भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
Indian Independence Act, 1947 in Hindi
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Indian Independence Act, 1947 in Hindi |
माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद् द्वारा पारित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे—
• भारत तथा पाकिस्तान नामक दो डोमीनियनों की स्थापना के लिए 15 अगस्त, 1947 की तारीख निश्चित की गई।
• इसमें भारत का क्षेत्रीय विभाजन भारत तथा पाकिस्तान के रूप में करने तथा बंगाल एवं पंजाब में दो-दो प्रांत बनाने का प्रस्ताव किया गया। पाकिस्तान को मिलने वाले क्षेत्रों को छोड़कर ब्रिटिश भारत में सम्मिलित सभी प्रांत भारत में सम्मिलित माने गए।
• पूर्वी बंगाल, पश्चिमी बंगाल और असम के सिलहट जिले को पाकिस्तान में सम्मिलित किया जाना था।
• भारत में महामहिम की सरकार का उत्तरदायित्व तथा भारतीय रियासतों पर महामहिम का अधिराजत्व 15 अगस्त, 1947 को समाप्त हो जाएगा।
• भारतीय रियासतें इन दोनों में से किसी में शामिल हो सकती थीं।
• प्रत्येक डोमीनियन के लिए पृथक् गवर्नर जनरल होगा, जिसे महामहिम द्वारा नियुक्त किया जाएगा। गवर्नर जनरल डोमीनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिए महामहिम का प्रतिनिधित्व करेगा।
• प्रत्येक डोमीनियन के लिए पृथक् विधानमंडल होगा, जिसे कानून बनाने का पूरा प्राधिकार होगा तथा ब्रिटिश संसद् उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी।
• डोमीनियन की सरकार के लिए अस्थायी उपबंध के द्वारा दोनों संविधानसभाओं को संसद् का दर्जा तथा डोमीनियन विधानमंडल की शक्तियाँ प्रदान की गईं।
• इसमें गवर्नर जनरल को एक्ट के प्रभावी प्रवर्तन के लिए ऐसी व्यवस्था करने हेतु, जो उसे आवश्यक तथा समीचीन प्रतीत हो, अस्थायी आदेश जारी करने का प्राधिकार दिया गया।
• इसमें सेक्रेटरी ऑफ दि स्टेट की सेवाओं तथा भारतीय सशस्त्र बल, ब्रिटिश स्थल सेना, नौसेना और वायु सेना पर महामहिम की सरकार का अधिकार क्षेत्र अथवा प्राधिकार जारी रहने की शर्तें निर्दिष्ट की गई थीं। इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के अनुसार, 14-15 अगस्त, 1947 को भारत तथा पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्रों का गठन कर दिया गया। इस प्रकार भारतीय संविधान की बहुत सी संस्थाओं का विकास संवैधानिक विकास के लंबे समय में हुआ। इसका सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण है—संघीय व्यवस्था। यह व्यवस्था कांग्रेस और मुसलिम लीग द्वारा सन् 1916 के लखनऊ समझौते में स्वीकार की गई थी। साइमन कमीशन ने भी संघीय व्यवस्था पर बल दिया और सन् 1935 के अधिनियम ने संघीय व्यवस्था की स्थापना की, जिसमें प्रांतों के अधिकार ब्रिटेन के क्राउन द्वारा प्राप्त हुए थे। जब तक भारत स्वतंत्र हुआ, तब तक राष्ट्रीय आंदोलन के नेता संघीय व्यवस्था के लिए वचनबद्ध हो चुके थे। संसदीय व्यवस्था, जो कार्यपालिका और विधायिका के संबंधों को परिभाषित करती है, भारत में अपरिचित नहीं थी। इस तरह भारतीय संविधान, संविधान के रचनाकारों की बुद्धिमानी एवं सूक्ष्म दृष्टि और कालक्रम में विकसित संस्थाओं व कार्यविधियों का एक अपूर्व सम्मिश्रण है। समग्रतः भारतीय संविधान की रचना भारत पर ब्रिटिश शासन द्वारा थोपे गए विभिन्न अधिनियमों की पृष्ठभूमि पर हुई, जो ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में व्यापार से लेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की समाप्ति तक बनाए जाते रहे थे। इस रूप में भारतीय संविधान की रचना में भारत में ब्रिटिश शासन, उससे उत्पन्न विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का विशेष हाथ कहा जा सकता है। यह संविधान एक युग का पटाक्षेप और दूसरे युग का शुभारंभ है। असमानता, सांप्रदायिकता, दमन, अत्याचार एवं अनेक सामाजिक कुरीतियों को दूर कर गौरवसंपन्न भारत में स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व तथा न्याय के आदर्शों की नींव इस संविधान में रखी गई है।
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