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हम हिन्दुस्तानी अस्तित्व में कैसे आए ? History Of first Indians

हम हिन्दुस्तानी अस्तित्व में कैसे आए ? History Of first Indians

हमारे उन पूर्वजों, शुरुआती हिन्दुस्तानियों की कहानी, जो अफ़्रीका, पश्चिम एशिया, पूर्व एशिया से आए और जिन्होंने पिछले 65,000 सालों के दौरान इस भूमि को अपना बनाया।

लेकिन क्या आपने कभी इस पर सोचा है कि जिस वक़्त लगता है कि आप बिलकुल भी गतिशील नहीं हैं, उस वक़्त आप कितनी तेज़ी-से गतिशील होते हैं? — प्रोफ़ेसर ऐंड्र्यू फ़्रेक्नोइ, खगोलशास्त्री


हम हिन्दुस्तानी अस्तित्व में कैसे आए ? History Of first Indians
History Of first Indians 

Source : Book - History Of first Indian 


चीज़ें प्रायः वैसी नहीं होतीं, जैसी वे दिखाई देती हैं। अपने अध्ययन-कक्ष में किसी आरामदेह कुर्सी पर बैठकर यह वाक्य पढ़ते हुए संभव है आप स्वयं को स्थिर मानकर चल रहे हों, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं, क्योंकि जिस आकाशगंगा का आप हिस्सा हैं, वह अंतरिक्ष में 21 लाख किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से गतिशील है। और यहाँ हम पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने (भूमध्यरेखा पर 1600 किलोमीटर प्रति घंटा और घ्रुवों पर शून्य), उसके सूर्य की परिक्रमा करने (107,000 किलोमीटर प्रति घंटा), और आकाशगंगा (मिल्की-वे) नामक तारक पुंज (गैलेक्सी) के चारों ओर सूर्य की परिक्रमा (792,000 किलोमीटर प्रति घण्टा)1 के प्रभावों पर विचार नहीं कर रहे हैं। इस तरह ऊपर का पैराग्राफ़ पढ़ने में आपको मोटे तौर पर, जो बीस सेकंड लगे होंगे, उतने में आप हज़ारों किलोमीटर चल चुके होंगे, जिसकी आपको जानकारी तक न होगी। ऊपर की इन गणनाओं तक ले जाने वाली प्रत्येक क्रमिक खोज, जैसे पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करने वाले कई ग्रहों में से एक ग्रह है, सूर्य आकाशगंगा नामक तारक पुंज का महज़ एक औसत, अधेड़ उम्र का तारा है और यह तारक पुंज स्वयं भी कम-से-कम सौ अरब तारक पुंजों में से महज़ एक तारक पुंज है आदि ने कुछ मनुष्यों के मन में किंचित छोटे होने का अहसास जगाया, तो वहीं कुछ अपेक्षाकृत बुद्धिमानों के मन में इससे उस चीज़ के आकार और तेज को लेकर विस्मय का नया अहसास जागा, जिस चीज़ के हम सब हिस्सा हैं। और यह बात न सिर्फ़ ब्रह्माण्ड के अर्थ में सही है, बल्कि जैविक अर्थ में भी सही है। जब से डार्विन ने डेढ़ सदी पहले विकासवाद का सिद्धान्त गढ़कर और यह संकेत कर कि चिम्पाज़ी हमारे सबसे क़रीबी रिश्तेदार हो सकते हैं, मानव-जाति को सकते में ला दिया है, तब के बाद की हर खोज हमारी उस विशेष हैसियत को नष्ट करती रही है, जिससे हम ख़ुद को उसके पहले तक उदारतापूर्वक नवाज़ते आए थे। पहले हम सोचते थे कि जब हम, आधुनिक मनुष्य या होमो सेपियन्स,2 दृश्य में आए थे, तब पहले जिस तरह के औज़ार बनाए जाते रहे थे, उनमें, साथ ही कारीगरी और अमूर्त चिन्तन की पूर्वविकसित अवस्था में एक आकस्मिक और सराहनीय बदलाव आया था। आज हम जानते हैं कि वह सब अहंकार था, और यह कि हमारे द्वारा निर्मित औज़ार और विकास-प्रक्रिया के हमारे सबसे क़रीबी चचेरों-होमो इरेक्टस, होमो निएंडरथलेन्सिस, डेनीसोवनों - द्वारा निर्मित औज़ार अक्सर ऐसे थे जिनमें फ़र्क़ नहीं किया जा सकता और यह कि ऐसा कोई क्षण नहीं रहा, जिसे निर्णायक क्षण कहा जा सकता हो। होमो प्रजातियों (जिनमें होमो परिवार के जो सदस्य आज बचे हैं वे सिर्फ़ होमो सेपियन्स ही हैं) के मस्तिष्क भी हमारे जितने ही बड़े थे। 


हम हिन्दुस्तानी अस्तित्व में कैसे आए ? History Of first Indians

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हम हिन्दुस्तानी अस्तित्व में कैसे आए ? History Of first Indians

हम हिन्दुस्तानी अस्तित्व में कैसे आए ? History Of first Indians

पिछले दशक में हमें पता चला था कि वे आनुवांशिक तौर पर (जनेटिकली) होमो सेपियन्स के इतने पर्याप्त क़रीब थे, जिनके साथ यौन संसर्ग किया जा सकता था और ऐसे बच्चे पैदा किए जा सकते थे, जो स्वयं भी सन्तानों को जन्म देने में सक्षम होते। यह बात हम इसलिए जानते हैं, क्योंकि आज सारे ग़ैर-अफ़्रीकी होमो सेपियन्स अपने डीएनए में निएंडरथलस के 2 प्रतिशत जीन्स धारण किए हुए हैं। हम में से कुछ - जैसे कि मेलेनेसियाई, पापुआई और ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी - 3 से 6 प्रतिशत डेनीसोवियाई डीएनए भी धारण किए हुए हैं। इस आनुवांशिक विरासत की वजह से हम उनको अपने पूर्वज कह सकते हैं, लेकिन ज़्यादा तर्कसंगत यह होगा कि हम उनको अपने विकासपरक चचेरों के रूप में देखें, जिनके साथ होमो सेपियन्स ने खिलवाड़ किया था। जैविक तौर पर हम उत्तरोत्तर जारी विकास-प्रक्रिया के महज़ एक अंग हैं, जिसमें होमो सेपियन्स के डीएनए में चिम्पांज़ियों का 96 प्रतिशत हिस्सा है। और स्वयं होमो सेपियन्स का उदय कोई एकमात्र नाटकीय प्रकरण नहीं था। यह एक धीमी प्रक्रिया थी, जिसमें कई शुरुआतें हुई थीं और होमो प्रजाति के उन विभिन्न सदस्यों का परस्पर मिश्रण हुआ था, जिनमें से सारे-के-सारे अब लुप्त हो चुके हैं। हमारे बीच के जो लोग संकुचित सोच रखने वाले हैं, उनके लिए यह अगर स्वीकार न किए जाने लायक़ नहीं, तो भुला देने लायक़ तथ्य होगा। बाक़ी लोगों के लिए यह अपने आस-पास के जीवन को सराहने और उस एकता पर विस्मय करने की एक और वजह होगी, जिसने समस्त जीवन को आपस में कसकर बाँघ रखा है। जो बात सृष्टिविज्ञान और जीवविज्ञान पर लागू होती है, वही हमारे इतिहास पर भी लागू होती है। होमो सेपियन्स के किंचित संक्षिप्त-से इतिहास (जो पृथ्वी पर जीवन के 3.8 अरब वर्षों के इतिहास के मुक़ाबले में महज़ 300,000 साल के आस-पास है) में हमारा प्रत्येक क़बीला, वंश, राज्य, साम्राज्य और राष्ट्र स्वयं को श्रेष्ठतम मानता रहा है। कुछ का ख़याल था कि वे किसी विशेष ईश्वर की सन्तानें हैं, कुछ का ख़याल था कि वे ईश्वर द्वारा चुने गए लोग हैं, और कुछ का ख़याल था कि उन्हें हर किसी पर शासन करने का दैवीय आदेश मिला हुआ है। लोगों का यह भी ख़याल था कि पृथ्वी के जिस हिस्से पर उनका अधिकार है, वह सब कुछ का केन्द्र है - उदाहरण के लिए, चीनियों के मध्य राज्य (मिडिल किंगडम ऑफ़ चायनीज़) या नॉर्स के ‘मिडगार्ड’ (मिडिल एन्क्लोज़र) के मिथक को लिया जा सकता है। अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के राष्ट्रवाद इन्हीं तमाम धारणाओं पर आधारित थे, जिनका उद्देश्य हर किसी को यह विश्वास दिलाना था कि वे जिन नए रचे गए ‘राष्ट्रों’ के निवासी हैं, वे दूसरे राष्ट्रों से बेइंतहा श्रेष्ठ हैं, और वे ‘चिरकाल’ से अस्तित्व में रहे हैं! वास्तव में, जब भी कभी हम अपने सुदूर इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं तो जो शब्द हमें अक्सर सुनने को मिलता है, वह ‘चिरकाल’ ही होता है। निश्चय ही इनमें से कोई भी धारणा सही नहीं है। इंसानों के किसी भी समुदाय की दूसरे समुदायों की अपेक्षा विशेष हैसियत नहीं है। कोई भी जाति ईश्वर की सन्तान या ईश्वर द्वारा चुनी गई नहीं है, और अगर है तो फिर सभी हैं। और हममें से कोई भी पृथ्वी के केन्द्र में उससे ज़्यादा नहीं है, जितना पृथ्वी की परिधि पर है, क्योंकि हम भूमण्डल की सतह पर रहते हैं। राष्ट्रों को हम जिस रूप में आज समझते हैं, उस रूप में वे कुछ सदियों से ज़्यादा पुराने नहीं हैं, और हम सब - आनुवांशिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर पर - एक-दूसरे से उससे ज़्यादा जुड़े हुए हैं, जितना जुड़े होने की हम कल्पना करते हैं। और यहाँ तक कि ‘चिरकाल’ की भी उत्तरोत्तर व्याख्या की जा सकती है। उसका काल-निर्धारण, और विश्लेषण किया जा सकता है, उसको समझा जा सकता है। और जब हम ऐसा करते हैं, तो हमें अपने समाज और संस्कृति और उनके निर्माण की प्रक्रिया की बेहतर समझ हासिल होती है। क्या यह किसी के लिए विचलित करने वाली बात होगी? निश्चय ही। यह कुछ इस तरह की बात है, जैसे उस जादूगर के रहस्यों की असलियत बताई जा रही हो, जो आपको बचपन में मन्त्रमुग्ध कर लेता था। जब आपको उसके रहस्यों के बारे में पता चलता है, तो या तो आप अपनी खोई हुई मासूमियत और जादू के ध्वस्त हो चुके सम्मोहन पर आँसू बहा सकते हैं, या फिर अपने नए ज्ञान पर, उस ज्ञान द्वारा बहुत-सी चीज़ों के साफ़ होने पर तथा उन चीज़ों के साथ कुछ करने की संभावनाओं पर आनन्द मना सकते हैं। प्रिय पाठक, Uniexpro.in का पक्का विश्वास है कि आप इस दूसरी तरह के व्यक्ति हैं। आगे हम देखेंगे कि किस तरह और कब हिन्दुस्तान में आधुनिक इंसानों या होमो सेपियन्स का आगमन हुआ; वे हमारे लिए कौन-से साक्ष्य छोड़ गए; आज उनके वंशज कौन हैं; वे कौन लोग हैं, जो उनके बाद इस देश में प्रवासियों के रूप में आए; कैसे और कब हमने कृषि और दुनिया की उस समय की सबसे बड़ी सभ्यता खड़ी करने की शुरुआत की; कब

और क्यों इस सभ्यता का पतन हुआ; और फिर उसके बाद क्या हुआ। यह पुस्तक प्रागैतिहास (प्रिहिस्टॅरी) के बारे में है, और प्रागैतिहास उस काल के बारे में होता है, जो इतिहास के पहले आता है। इतिहास की शुरुआत तब होती है, जब लेखन की शुरुआत होती है और जब व्यक्ति स्वयं अपने नामों के साथ और कभी-कभी पहचान सकने योग्य क़िस्सों के साथ, हमारे सामने साकार हो उठते हैं। प्रागैतिहास में कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं होते और इसलिए हम लोगों के नामों और व्यक्तियों के स्थानों या क़िस्सों के बारे में निश्चित तौर पर नहीं जान सकते, लेकिन, किसी हद तक, हम दूसरी तरह के साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हुए यह पता लगा सकते हैं कि तब के लोगों का जीवन किस तरह का रहा होगा। प्रागैतिहास का साक्ष्य जीवाश्मों से, प्राचीन इंसानी बसवाटों के पुरातात्त्विक उत्खननों से, इंसानों द्वारा गढ़ी गई औज़ारों जैसी विभिन्न वस्तुओं से, और, प्राचीन तथा आज के समय के व्यक्तियों के, उत्तरोत्तर महत्त्वपूर्ण होते जा रहे डीएनए से प्राप्त होता है। तब हिन्दुस्तान का प्रागैतिहास कहाँ पर समाप्त होता है और उसके इतिहास की शुरुआत कहाँ से होती है? यह पेचीदा सवाल है, क्योंकि हमारे पास मुद्राओं तथा पट्टिकाओं पर उकेरे गए हड़प्पा की उस सभ्यता के समय के लिखित दस्तावेज़ उपलब्ध हैं, जो ईसापूर्व 2600 से ईसापूर्व 1900 तक फलती-फूलती रही थी, इसलिए एक अर्थ में हम कह सकते हैं कि यही वह समय है, जब हमारे इतिहास की शुरुआत होती है और प्रागैतिहास का अन्त होता है, लेकिन हम अभी भी हड़प्पा की लिपि को पढ़ नहीं सके हैं और, चूँकि हमें इसकी कोई जानकारी नहीं है कि उन दस्तावेज़ों में क्या लिखा है, इसलिए वह कालखण्ड इतिहास के बाहर और प्रागैतिहास के भीतर आता है, लेकिन फिर, हमारे पास पश्चिम एशिया की मेसोपोटेमियाई सभ्यता के समकालीन दस्तावेज़ों में हड़प्पा की सभ्यता के कुछ संदर्भ मौजूद हैं, इसलिए यह चीज़ इस सभ्यता को एक बार फिर इतिहास का हिस्सा बना देती है। यही वह संशयात्मक स्थिति है, जिसने कुछ इतिहासकारों को प्रागैतिहास और इतिहास के बीच के कालखण्ड को चित्रित करने के लिए ‘आसन्न-इतिहास’ (प्रोटो-हिस्टॅरी) की संज्ञा के इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया है।

 किस तरह मूल अफ़्रीका से स्थानान्तरित एक क़बीले ने हिन्दुस्तान का रास्ता खोजा, किस तरह वह विकास-प्रक्रिया में सहभागी अपने चचेरे भाइयों और तरह-तरह की पर्यावरणपरक चुनौतियों से निपटा, किस तरह उसने नई प्रौद्योगिकी (टेक्नॉलॉजी) में महारथ हासिल की, इस भूमि को अपना बनाया और किस तरह वह पृथ्वी की सबसे बड़ी इंसानी आबादी बन गया।

अगर आप हिन्दुस्तान के प्रथम आधुनिक इंसानों के भरसक क़रीब पहुँचना चाहते हैं, तो इसके लिए मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में भीमबेटका सबसे श्रेष्ठ स्थल है, जो मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग पैंतालीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सम्मोहक स्थल है, जो सात पहाड़ियों में फैला है और उन नैसर्गिक शैलाश्रयों से भरपूर है, जो इक्कीसवीं सदी में मनुष्यों द्वारा निर्मित आवासों की तुलना में कहीं ज़्यादा प्रभावशाली और भव्य हैं। वहाँ सदाबहार झरने, नाले, और मछलियों से भरी छोटी-छोटी जलधाराएँ हैं; बड़ी तादाद में फल और कन्द-मूल हैं; हिरण, जंगली सूअर और खरगोश हैं; और निश्चय ही उतनी मात्रा में क्वार्टज़ाइट चट्टानें हैं, जितनी की ज़रूरत आपको उतने औज़ार बनाने के लिए हो सकती है,

लेकिन क्या हमें ठीक-ठीक जानकारी है कि भीमबेटका में, यानी हिन्दुस्तान में, प्रथम आधुनिक मनुष्यों ने कब क़दम रखा था? इसका जवाब कुछ मुश्किल है। सबसे पहले हमें इस बात को परिभाषित करने की ज़रूरत है कि ‘हिन्दुस्तान में प्रथम आधुनिक मनुष्य’ से हमारा क्या अभिप्राय है। तकनीकी तौर पर इस पद का अर्थ होगा, होमो सेपियन्स प्रजाति से संबंघ रखने वाला कोई भी ऐसा व्यक्ति, जिसने हिन्दुस्तान में पहली बार क़दम रखा, लेकिन जब हम ‘हिन्दुस्तान में प्रथम आधुनिक मनुष्यों’ पद का इस्तेमाल करते हैं, तो अक्सर हमारा अभिप्राय हिन्दुस्तान में आज रह रहे लोगों के सबसे पहले के क़रीबी पूर्वजों से भी होता है। इन दोनों के बीच के फ़र्क़ को समझना महत्त्वपूर्ण है।

उदाहरण के लिए, हम कह सकते हैं कि हिन्दुस्तान में होमो सेपियन्स का भीमबेटका में 80,000 साल पहले तीस लोगों का एक समूह था। हम यह भी कह सकते हैं कि किसी आपदा, जैसे कि 74,000 साल पहले इंडोनेशिया के सुमात्रा में हुआ टोबा नामक महाज्वालामुखीय विस्फोट, जिसने पूर्व एशिया से लेकर पूर्व अफ़्रीका के समूचे इलाक़े पर असर डाला था - ने आधुनिक मनुष्यों के इस समूह के एक-एक व्यक्ति को ख़त्म कर इस उपमहाद्वीप में बसने के लिए किसी को नहीं छोड़ा।1 अब हम लगभग 50,000 साल पहले भीमबेटका में आधुनिक मनुष्यों के एक दूसरे समूह की कल्पना करें, जो वहाँ बसने में कामयाबी हासिल करता है और अपने पीछे उन लोगों का एक वंश छोड़ जाता है, जो आज भी हिन्दुस्तान में पाए जाते हैं।

इस तरह जब हम ‘हिन्दुस्तान में प्रथम आधुनिक मनुष्य’ पद का प्रयोग करते हैं, तब क्या हम इस दूसरे समूह की ओर संकेत कर रहे होते हैं? यह एक शब्दार्थ-विज्ञान की तरह का मसला लग सकता है और, एक अर्थ में, वैसा है भी, लेकिन उस वक़्त इसके महत्त्वपूर्ण अभिप्राय होते हैं, जब हम आरम्भिक हिन्दुस्तानियों के इतिहास को समझने के लिए पुरातात्त्विक या दूसरे साक्ष्यों की व्याख्या करते हैं।

अगर आप हिन्दुस्तान के पुरातत्त्वविदों से पूछें कि प्रथम आधुनिक मनुष्य हिन्दुस्तान में कब आए थे, तो इस बात की पूरी संभावना है कि उनमें से कम-से-कम कुछ पुरातत्त्वविद एक ऐसी तिथि पेश करें, जो 120,000 साल पहले तक की हो सकती है, लेकिन अगर यही सवाल आप किसी आबादी वंशविज्ञानी से, यानी, विभिन्न आबादी समूहों के भीतर और उनके बीच वंशपरक भिन्नताओं का अध्ययन करने वाले किसी

वंशविज्ञानी से पूछें, तो पूरी संभावना है कि उसका जवाब हो - लगभग 65,000 साल पहले। दो विज्ञानों के बीच का यह असंगत प्रतीत होता भेद ज़रूरी तौर पर अन्तर्विरोधी नहीं है। जब वंशविज्ञानी हिन्दुस्तान के प्रथम आधुनिक मनुष्यों की बात करते हैं, तो वे आधुनिक मनुष्यों के उस समूह की बात करते हैं, जो अपने पीछे उस वंश को छोड़ने में कामयाब रहे, जो आज भी मौजूद है, लेकिन जब पुरातत्त्वविद हिन्दुस्तान के प्रथम आधुनिक मनुष्यों की बात करते हैं, तो वे आधुनिक मनुष्यों के उस पहले समूह की बात कर रहे होते हैं, जो अपने पीछे ऐसे पुरातात्त्विक साक्ष्य छोड़ गए हैं, जिनका आज परीक्षण किया जा सकता है, भले ही उनका कोई वंश बचा रह गया हो या न बचा हो।


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