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अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक सुधार

अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक सुधार (Alauddin Khilji’s Administrative Reforms) 

अलाउद्दीन ख़िलजी के प्रशासनिक सुधार
अलाउद्दीन ख़िलजी के प्रशासनिक सुधार 


अलाउद्दीन खिलजी मौलिक प्रतिभा सम्पन्न योग्य प्रशासक था। उसने प्रशासन में कई महत्वपूर्ण सुधार किए जिसका अनुसरण बाद के शासकों ने किया। बाजार नियन्त्रण तो उसकी ऐसी नवीन योजना थी जिसका भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। उसने सारे प्रशासन में शक्ति और कार्यकुशलता में वृद्धि की। उसके शक्तिशाली व्यक्तित्व का प्रभाव सम्पूर्ण प्रशासन पर देखा जा सकता है।

 राजस्व नीति

अलाउद्दीन ने राजस्व नीति में कई सुधार किए जो इस प्रकार हैं— 

(1) मुस्लिम माफीदार वर्ग—

राजस्व में वृद्धि करने के लिए अलाउद्दीन सभी प्रकार के माफी जमीनों, जैसे—इनाम, इद्रारात, वक्फ, मिल्क, मफ्रूज को निरस्त कर दिया।

ये माफी की जमीनें केवल मुसलमानों को पूर्ववर्ती सुल्तानों ने प्रदान की थीं। लेकिन राज्य की नीति के बारे में सुल्तान संकीर्ण साम्प्रदायिक विचारों से प्रभावित नहीं होता था। यह निश्चित है कि अधिकांश माफी की जमीनों को जब्त किया गया। बरनी सुल्तान की आलोचना करते हुए कहता है कि इससे अनेक मुस्लिम परिवार अत्यन्त दरिद्र हो गए। 

(2) हिन्दू जमींदार वर्ग—

इसी प्रकार की नीति सुल्तान ने हिन्दू माफीदार वर्ग पर लागू की। यह जमींदार वर्ग राजस्व अधिकारी था जिन्हें सेवा के बदले में माफी की जमीन प्रदान की गई थी। सुल्तान इनके भ्रष्टाचारी जीवन से परिचित था। राज्य की आय में वृद्धि करने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी शक्ति समाप्त करने के उद्देश्य से सुल्तान ने उनकी माफी की भूमियों पर भूमि कर लगा दिया। बरनी इन राजस्व अधिकारियों को खुत, चौधरी और मुकद्दम कहता है यह वंशानुगत वर्ग था। इन सुधारों से कृषकों में भेदभाव मिट गया और सभी कृषक एक समान हो गए। 

(3) भू-राजस्व में वृद्धि—

मद्य-निषेध की नीति से राजकोष को काफी राजस्व की हानि हुई। इसके अलावा मंगोलों के आक्रमण, आन्तरिक विद्रोहों के दमन तथा साम्राज्य विस्तार के लिए एक बड़ी और शक्तिशाली सेना की आवश्यकता थी। अतः अलाउद्दीन ने भूमि कर को बढ़ाकर उपज का 1/2 भाग कर दिया। मुस्लिम कानून में भू-राजस्व अधिकतम 1/2 तक करने की अनुमति थी। 

(4) राजस्व संग्रह में सुधार—

अलाउद्दीन जानता था कि भू-राजस्व में उपज का 1/2 भाग लेने से कृषक पर काफी भार पड़ेगा। इसलिए उसने कृषकों को उचित न्याय देने का प्रयास किया। इसके लिए उसने भूमि की पैमाइश आरम्भ की जिससे किसान से केवल उचित लगान ही लिया जाये। दूसरा सुधार पटवारियों के रिकॉर्ड (बही) की जाँच करने की परम्परा भी आरम्भ की। अलाउद्दीन चाहता था कि किसानों से भू-राजस्व अनाज के रूप में लिया जाये। बाजार नियन्त्रण के कारण भी यह आवश्यक हो गया। इसके लिए उसने प्रान्तीय अधिकारियों को आदेश दिए। 

(5) दीवान-ए-मुस्तखराज—

राजस्व विभाग का सबसे बड़ा दोष यह था कि भू-राजस्व का बकाया पड़ा रहता था। सुल्तान ने इस समस्या को हल करने के लिए एक विशेष दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना की। यह विभाग राजस्व अधिकारियों के प्रति कठोर नीति के द्वारा बकाया राशि को वसूलता था। इसके लिए अधिकारियों को यातना भी दी जाती थी। 

(6) वेतन में वृद्धि—

अलाउद्दीन राजस्व विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहता था। इस बुराई को दूर करने के लिए उसने राजस्व अधिकारियों का वेतन बढ़ा दिया, जिससे वे सुविधापूर्वक रह सकें। इस पर भी जिन अधिकारियों ने भ्रष्टाचार नहीं छोड़ा, उन्हें अलाउद्दीन ने कठोर दण्ड दिया। बरनी लिखता है कि इस प्रकार के दस हजार अधिकारियों को निर्दयतापूर्वक कठोर दण्ड दिए गए। 

(7) अतिरिक्त कर—

राजस्व में वृद्धि करने के लिए अलाउद्दीन ने दो नए कर—घरी अर्थात् गृह-कर और चरी अर्थात् चराई-कर लगाए। भू-राजस्व में वृद्धि के कारण किसानों पर कर भार काफी बढ़ गया था। इसलिए इन नए करों को लगाने में अलाउद्दीन ने उदारता से काम लिया। उसने गृह-कर में तो कोई छूट नहीं दी लेकिन चरी-कर में


अलाउद्दीन ख़िलजी के प्रशासनिक सुधार
अलाउद्दीन ख़िलजी के प्रशासनिक सुधार


कुछ छूट दी। उसने दो बैल, दो भैंस, दो गाय और दस बकरियों को करों से मुक्त कर दिया। इससे उन किसानों को राहत मिली जो इन पशुओं को अपने परिवारों के लिए रखते थे। 

(8) पशुओं पर जकात समाप्त करना—

जो व्यापारी पशुओं का व्यापार करते थे और बड़ी संख्या में पशु पालते थे, उन पर चराई का बोझ बढ़ गया था। इस भार को कम करने के लिए सुल्तान ने पशुओं पर जकात समाप्त कर दी। 

(9) जजिया—

मुस्लिम राज्य में हिन्दुओं से जजिया लिया जाता था वह राजस्व का एक मुख्य स्रोत था। डॉ. आर. पी. त्रिपाठी का कहना है कि, “अलाउद्दीन ने जजिया वसूल करने में उत्साह का प्रदर्शन नहीं किया क्योंकि उसने करों के बोझ में काफी वृद्धि कर दी और वह जानता था कि उससे अधिक कर वसूल करने की न तो आवश्यकता है और न लोगों में क्षमता है।”1 यह भी कहना गलत है कि करों के भारी बोझ से वह हिन्दुओं को दरिद्र बनाना चाहता था। किसान और बहुसंख्यक राजस्व अधिकारी हिन्दू थे। अतः स्वाभाविक है कि करों का अधिकांश भार उन पर पड़ा।

(10) जागीरों की समाप्ति—

अलाउद्दीन ने सैनिकों को वेतन नकद रूप में दिया। वह अक्ता प्रणाली का विरोधी था और उसने वेतन के बदले भूमि देने की प्रथा बन्द कर दी। अब भूमि-राजस्व को संग्रह करके शाही खजाने में जमा किया जाता था और खजाने से सैनिकों को नकदी के रूप में वेतन दिया जाता था।
जियाउद्दीन बरनी ने अलाउद्दीन की कर प्रणाली की कटु आलोचना की है। यह सत्य है कि अलाउद्दीन ने करों के बोझ में काफी वृद्धि कर दी थी और इसका भार सभी वर्गों पर पड़ा था। कृषक, व्यापारी, भू-स्वामी वर्गों पर सुल्तान ने समान रूप से इस बोझ को बढ़ाया था। इस वृद्धि का औचित्य यह था कि विदेशी आक्रमण से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए तथा आन्तरिक शान्ति स्थापित करने के लिए यह वृद्धि आवश्यक थी और यह उत्तरदायित्व सभी वर्गों को वहन करना था।



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