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सदोष मानव वध क्या होता है? यह हत्या की कोटि में कब आता है sadosh manav vadh kya hai ? Hindi me



सदोष मानव वध क्या होता है? यह हत्या की कोटि में कब आता है?


सदोष मानव वध क्या होता है? यह हत्या की कोटि में कब आता है
सदोष मानव वध क्या है ? समझाइए। 



सदोष मानव वध क्या होता है? यह हत्या की कोटि में कब आता है?

    शरीर के प्रति कारित किये जाने वाले अपराधों में सर्वाधिक गम्भीर अपवाद 'सदोष मानव वध' एवं 'हत्या' है ! भारतीय दण्ड संहिता की धारा 299 एवं 300 में इनकी परिभाषा और धारा 302 व 304 में इनके लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है !

सदोष मानव वध क्या है?

    भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 299 में सदोष मानव वध अर्थात् आपराधिक मानव वध की परिभाषा दी गई है ! इसके अनुसार -
    जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से या कोई ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना सम्भाव्य हो या यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दें, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देता है तो वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है !
    इस प्रकार मृत्यु कारित करने के आशय से या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य हो, कोई कार्य करके किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देना आपराधिक मानव वध है !
    उदाहरण- क एक गढ्ढे पर लकड़ियां और घास इन आशय से बिछाता है कि इससे वह कोई मत्यु कारित करे या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि इसके द्वारा मृत्यु कारित हो ! यह विश्वास करते हुए कि यह भूमि सुदृढ़ है ख उस पर चलता है ! और गढ्ढे में गिरकर मर जाता है ! क आपराधिक मानव वध का अपराध करता है !

आवश्यक तत्व :-

    उपरोक्त परिभाषा से आपराधिक मानव वध के निम्नांकित तत्व स्पष्ट होते हैं -
    1- मृत्यु कारित करने के आशय से कोई कार्य करके किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देना,
    2- ऐसी कोई शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य हो, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देना,
    3- यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भव है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देना !
    घनश्याम बनाम स्टेट 1996 क्रि.लॉ.ज. 27 मुम्बई के मामले में पत्नि द्वारा सम्भोग से इन्कार कर दिये जाने पर पति द्वारा उसके सीने पर वेधन किया जो नैराश्य, क्षणिक आवेग व क्रोध का परिणाम था ! अभियुक्त को धारा 299 के खण्ड(2) के अन्तर्गत आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया !

हत्या क्या है?

    संहिता की धारा 300 में 'हत्या' की परिभाषा दी गई है ! इसके अनुसार - कुछ अपवादित दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव वध हत्या है, यदि कोई कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो अथवा -
    1- यदि वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी यह जानता हो कि इससे उस व्यक्ति की मृत्यु कारित होना सम्भव है जिसको वह अपहानि कारित कर रहा है,
    उदाहरण- क, ख की मृत्यु कारित करने के आशय से उस पर गोली चलाता है जिससे ख की मृत्यु हो जाती है तो क, ख की हत्या का दोषी है !

    2- यदि वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली क्रम में कारित करने का आशय हो या प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो,
    उदाहरण- क, ख को तलवार या लाठी से यह जानते हुए हमला करता है कि वह किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है ! अत: परिणामस्वरूप ख की मृत्यु हो जाती है ! क, ख की हत्या का दोषी है यधपि उसका आशय ख की मृत्यु कारित करना नहीं रहा हो !
    3- यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना संकटपूर्ण है कि पूरी सम्भावना है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर देगा जिससे मृत्यु कारित होना सम्भव है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप से क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे !
    उदाहरण- क यह जानते हुए ख ऐसे रोग से ग्रस्त है कि सम्भव है कि सम्भव है कि एक प्रहार ही उसकी मृत्यु कारित कर दे ! तब भी वह शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से उस पर आघात करता है जिससे ख की मृत्यु हो जाती है ! क हत्या का दोषी है !

आवश्यक तत्व :-

    हत्या की परिभाषा से उसके निम्नांकित तत्व परिलक्षित होते हैं-


1- मृत्यु कारित करने का आशय :-

    हत्या का पहला आवश्यक तत्व है मृत्यु कारित करने का आशय होना !
    उदाहरण- क नामक अभियुक्त एक झोंपड़ी के बाहर ताला लगा देता है ताकि बाहर के लोग उसे खोल ना सकें ! झोंपड़ी में मृतक ख सोया हुआ था ! क झोंपड़ी में आग लगा देता है जिससे ख की मृत्यु हो जाती है ! यहां क का आशय ख की मृत्यु कारित करने का था ! (आर. वेंकल एआईआर 1956 एस.सी. 171)

2- मृत्यु सम्भावित करने वाली शारीरिक क्षति कारित करना :-

    हत्या का दूसरा आवश्यक तत्व, अभियुक्त द्वारा इस आशय से शारीरिक क्षति कारित किया जाना जिसके बारे में वह जानता है कि उससे मृत्यु कारित होना सम्भव है ! (स्टेट अॉफ उत्तरप्रदेश बनाम राम सागर यादव एआईआर 1965 एस.सी. 416)
    यह उल्लेखनीय है कि हत्या के लिए कोई औजार, उपकरण या अस्त्र-शस्त्र निर्धारित नहीं है ! हत्या किसी भी औजार, उपकरण या अस्त्र-शस्त्र से कारित की जा सकती है ! (स्टेट अॉफ उत्तरप्रदेश बनाम इन्द्रजीत एआईआर 2000 एस.सी. 3158)

3- प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त होने वाली शारीरिक क्षति कारित करना :-

    यह हत्या का तीसरा आवश्यक तत्व है कि अभियुक्त द्वारा कोई कार्य कर इस आशय से शारीरिक क्षति कारित किया जाना जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो !
    उदाहरण- क, ख के मुंह पर प्लास्टिक चिपका देता है और प्लास्टर को एक रुमाल से बांध देता है और इसके बाद वह ख के नाक में क्लोरोफॉर्म युक्त रुई डाल देता है तथा उसके हाथ पैर बांधकर उसे एक नाले में डाल देता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है ! क हत्या का दोषी है! (राजवंतसिंह एआईआर 1966 एस.सी. 148)
    ए. रायुडू बनाम स्टेट एआईआर 2012 एस.सी. 1664 के मामले में पति को पत्नि के चरित्र पर सन्देह था ! एक दिन उसने शराब के नशे में पत्नि की गर्दन पर चाकू से वार किया जिससे काफी खून बह गया ! चिकित्सकीय रिपोर्ट में इसे मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त माना गया ! अभियुक्त को हत्या का दोषी माना गया न कि आपराधिक मानव वध का !
    लेकिन यदि शारीरिक क्षति ऐसी है जिससे प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित होना सम्भव नहीं है तो उसे हत्या नहीं माना जायेगा ! (लोकनाथ सिंह बनाम स्टेट अॉफ राजस्थान 1979 क्रि.लॉ.ज. 362 राजस्थान)

4- ऐसा कार्य जिससे मृत्यु कारित होना सम्भव हो :-

    हत्या का चौथा आवश्यक तत्व ऐसा कार्य किया जाना जिससे मृत्यु कारित होना सम्भव हो और उसका कोई प्रतिहेतु (excuse) नहीं होना !
    उदाहरण- क नामक अभियुक्त यह कहता है कि वह लोगों को सर्पदंश से निरापद कर सकता है और इसी के परिणामस्वरूप वह ख को एक सर्प से कटवाता है जिससे उसकी मृत्यु कारित हो जाती है ! क हत्या का दोषी है ! [नग बालू (1921) 11 एल.बी.आर. 56]
   इसी प्रकार क, ख की मृत्यु कारित करने के आशय से उसके सिर पर वार कर उसे पांच चोटें पहुंचाता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है ! क हत्या का दोषी है क्योंकि ऐसी चोटों से हत्या का होना सम्भाव्य था ! (जगदीश बनाम स्टेट अॉफ मध्यप्रदेश एआईआर 1981 एस.सी. 1167)

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 300 के अन्तर्गत अपवाद :-

    भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 300 में हत्या की परिभाषा के साथ कुछ अपवाद दिये गये हैं ! इन अपवादों के कई परिणाम निकलते हैं ! जैसे -
    1- हत्या आपराधिक मानव वध का गम्भीर रूप है,
    2- इन अपवादों के कारण प्रत्येक आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है,
    3- प्रत्येक हत्या आपराधिक मानव वध है किन्तु प्रत्येक आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है या यों कह सकते हैं कि इन अपवादों के अभाव में प्रत्येक आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है,
    4- आपराधिक मानव वध एक वंश है जबकि हत्या उसकी एक जाति अर्थात् आपराधिक मानव वध का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है जबकि हत्या का सीमित !

अपवाद 1 गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन :-

    आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी उस समय जब कि वह गम्भीर व अचानक प्रकोपन से आत्मसंयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल व दुर्घटनावश कारित करें !
    इस प्रकार आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि मृत्यु गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन के अधीन की जाये !
    लेकिन यह आवश्यक है कि ऐसा प्रकोपन-
    1- किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि कारित करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में स्वेच्छया प्रकोपित न हो अथवा,
    2- किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो अथवा,
    3- किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो !
    उदाहरण - अभियुक्त क अपनी पत्नि ख को पड़ोसी ग के साथ सम्भोग करते हुए देख लेता है और उसी समय वह ख एवं ग को गोली मार देता है ! इसे गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन के अन्तर्गत किया गया कृत्य माना गया !

अपवाद 2 प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग :-

    आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी शरीर या सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को सद्भावनापूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण करे और पूर्व चिन्तन बिना और ऐसी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि कारित करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे ! जिसके विरुद वह प्रतिरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो !
    उदाहरण - क, ख को चाबुक मारने का प्रयत्न करता है लेकिन इस प्रकार नहीं कि ख को घोर हानि कारित हो ! ख एक पिस्तौल निकाल लेता है ! क हमले को चालू रखता है ! ख सद्भावनापूर्वक यह विश्वास करते हुए कि वह लगने से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं बचा सकता और वह गोली चला देता है ! और क का वध हो जाता है! ख हत्या का नहीं बल्कि आपराधिक मानव वध का दोषी है !

अपवाद 3 लोक सेवक द्वारा अपनी शक्तियों के प्रयोग में अतिरेक :-

    आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए या लोक सेवक की मदद करते हुए जो लोक न्याय की अग्रसरता में कार्य कर रहा हो और वह विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाये और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधिपूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते कर्तव्य के निर्वहन के लिए आवश्यक होने का सद्भावनापूर्वक विश्वास करता है और उस व्यक्ति के प्रति जिसकी मृत्यु कारित की गई है, द्वैषभाव के बिना मृत्यु कारित करे !
    उदाहरण- पुलिस अधिकारी द्वारा एक व्यक्ति को चोरी के सन्देह में गिरफ्तार किया जाता है ! वह व्यक्ति पुलिस की अभिरक्षा से बचने के लिए पुलिस वाहन से कूदता है ! पुलिस अधिकारी के पास उसे रोकने का कोई और साधन नहीं होने के कारण वह उस पर गोली चलाता है जो किसी अन्य व्यक्ति को लग जाती है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है ! अभियुक्त को आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया, हत्या का नहीं !

अपवाद 4 अचानक झगड़ा :-

    आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि वह मानव वध अचानक झगड़ा जनित आवेश में हुई अचानक लड़ाई में पूर्व चिन्तन के बिना और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाये बिना या क्रूरतापूर्ण कार्य किये बिना किया गया हो !
    उदाहरण - दो पक्षों में अचानक झगड़ा हो जाता है और उनमें से किसी एक व्यक्ति को अभियुक्त द्वारा किसी घातक हथियार से गम्भीर चोट कारित हो जाती है जिससे वह मर जाता है ! अभियुक्त को आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया !
    जहाँ अभियुक्त और मृतक भाई-भाई हों तथा उनके बीच लम्बे समय से मन मुटाव चल रहा हो और दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो जाता है और अभियुक्त द्वारा मृतक के सीने में चाकू से वार कर उसकी मृत्यु कारित कर दी जाये वहां अभियुक्त धारा 300 के चौथे अपवाद का लाभ प्राप्त करने का हकदार होगा ! (जी.वैकटैय्या बनाम स्टेट अॉफ आन्ध्रप्रदेश एआईआर 2008 एस.सी. 462)

अपवाद 5 सहमति द्वारा मृत्यु :-

    आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाये वह अट्ठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे या मृत्यु की जोखिम उठाये !
    उदाहरण - एक पत्नि अपने पुत्र की मृत्यु के कारण अत्यन्त दुखी रहती थी ! वह अपने पति से बार-बार यह प्रार्थना करती थी कि वह उसे मार डाले ! एक दिन जब पत्नि सोई होती है तो पति उसे मार डालता है ! पति को आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया ! [अरनतो रुरनागत (1866) डब्ल्यू.आर.क्रि. 57]
    आपराधिक मानव वध कब हत्या होता है इस विषय पर स्टेट अॉफ उत्तरप्रदेश बनाम वीरेन्द्र प्रसाद एआईआर 2004 एस.सी. 1517 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि आपराधिक मानव वध हत्या है यदि निम्नांकित दो शर्तें पूरी हो जाये तो -
    1- यह कि वह कार्य जिससे मृत्यु कारित हो जाती है, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो अथवा शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो,
    2- वह शारीरिक क्षति ऐसी हो जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो !
    मृत्य दण्ड अत्यन्त गम्भीर मामलों में दिया जाना चाहिये ! सम्पत्ति के मामलों में पत्नि की हत्या गम्भीर मामला नहीं कहा जा सकता ! दण्ड के निर्धारण में अभियुक्त के बुरे आचरण पर विचार किया जाना उचित नहीं है ! (स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरलीमनोहर शर्मा बनाम स्टेट अॉफ कर्नाटक एआईआर 2007 एस.सी. 2531)




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