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कानून अर्थ परिभाषा प्रकार आवश्यक तत्व स्रोत ? Kanoon ka arth Paribhasha Prakar Avashyak Tatw aur Strot ?

 

कानून अर्थ परिभाषा प्रकार आवश्यक तत्व स्रोत ?

Kanoon ka arth Paribhasha Prakar Avashyak Tatw avam Strot ?


Kanoon ka arth Paribhasha Prakar Avashyak Tatw avam Strot ?
Kanoon ka arth Paribhasha Prakar Avashyak Tatw avam Strot ?


कानून राज्य का लक्ष्य मानव कल्याण की उचित व्यवस्था करना है, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति की आशा तभी की जा सकती है जबकि राज्य के नागरिक अपने जीवन में आचरण के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हों। अतः राज्य अपने नागरिकों के जीवन के संचालन हेतु नियमों का निर्माण करता है, जिनका पालन करना व्यक्ति के लिए आवश्यक होता है और जिनका पालन न किये जाने पर व्यक्ति दण्ड का भागी होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य द्वारा निर्मित और लागू किए जाने वाले इन नियमों को ही कानून कहते हैं।


कानून की अवधारणा विभिन्न समयों पर बदलती रही है। इसकी अवधारणा से संबंधित मुख्य विचारधाराएं निम्न हैं-

  1. दार्शनिक विचारधारा
  2. ऐतिहासिक विचारधारा
  3. विश्लेषणात्मक विचारधारा तथा
  4. समाजशास्त्रीय विचारधारा

कानून

कानून आंग्ल भाषा के ‘लॉ’ (Law) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘लॉ’ शब्द की उत्पत्ति ट्यूटॉनिक ‘लैग’ (Lag) से हुई है, जिसका अर्थ होता है ऐसी वस्तु जो सदा स्थिर, स्थायी और निश्चित या सभी परिस्थितियों में समान रूप में रहे। अतः शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘कानून’ का अर्थ है ‘वह जो एकरूप बना रहे।’

कानून की परिभाषा ‘सत्ता द्वारा आरोपित आचार व्यवहार के नियम के रूप में की गयी है। कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा कानून की परिभाषा इस प्रकार की गयी है।

ऑक्फोर्ड शब्दकोश में


कानून स्थिति, विचार तथा स्वभाव का वह अंश है, जिसे शासक की शक्ति लागू करती है।”

वुडरो विल्सन के अनुसार

“कानून सम्प्रभु की आज्ञा है।”

ऑस्टिन के मतानुसार,

न्याय के प्रशासन में जनता और नियमित न्यायालयों द्वारा मान्यता प्राप्त या लागू किये गये नियमों को कानून कहते हैं।

पाठण्ड के शब्दों में

“कानून नियमों का वह समूह है जिसे राज्य मान्यता देता है और न्याय व्यवस्था में प्रशासन में लागू करता है।”

सालमण्ड के अनुसार,

“अधिकारों और कर्तव्यों की उस पद्धति को कानून कहा जा सकता है, जिसे सरकार लागू करती है।”

ग्रीन ने कानून को परिभाषित करते हुए कहा है कि,

उपर्युक्त परिभाषाओं की अपेक्षा हालैण्ड की परिभाषा अधिक स्पष्ट है, जिसके अनुसार, के उन सामान्य नियमों को कानून कहते हैं, जो मनुष्य के बाहरी आचरण से संबंधित होते हैं और जिन्हें एक निश्चित सत्ता लागू करती है। यह निश्चित सत्ता राजनीतिक क्षेत्र की मानवीय सत्ताओं में सर्वोच्च होती है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कानून वे नियम हैं जिन्हें राज्य के द्वारा निर्मित या स्वीकृत किया जाता है और जिनका पालन न करने पर राज्य के द्वारा दण्डित किया जाता है


कानून के आवश्यक तत्व

उपरोक्त वर्णित परिभाषाओं की विवेचना के आधार पर कानून के प्रमुख रूप से निम्नलिखित पाँच तत्व प्राप्त होते हैं-


  1. कानून के लिए नागरिक समाज का अस्तित्व आवश्यक है क्योंकि नागरिक समाज ही एक सुव्यवस्थित संगठन है और इस संगठन के संचालन हेतु ही नियमों की आवश्यकता होती है।
  2. कानूनों का निर्माण तथा उनकी क्रियान्विति के लिए एक सम्प्रभुत्वपूर्ण सत्ता का अस्तित्व आवश्यक है।
  3. कानूनों का सम्बन्ध व्यक्ति के बाहरी आचरण से होता है, उनकी आन्तरिक भावनाओं से नहीं।
  4. नागरिकों को कानून का अनिवार्य रूप से पालन करना होता है और कानून का उल्लंघन करने पर वे राज्य दण्ड के भागी होते हैं।
  5. कानून ऐसे होने चाहिए, जिनका पालन न केवल दण्ड के भय से वरन् सामाजिक हित की भावना से किया जाए।


कानून के प्रकार

कानून मुख्यतः निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. व्यक्तिगत कानून
    ये कानून व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करते हैं। उदाहरणस्वरूप, ऋण सम्बन्धी कानून और जायदाद खरीदने व बेचने के कानून इसी श्रेणी में आते हैं।
  2. सार्वजनिक कानून
    इन कानूनों द्वारा व्यक्ति का सरकार या राज्य के साथ सम्बन्ध निश्चित किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, कर लगाने, चोरी, डकैती और हत्या करने वालों को दण्ड देने के लिए जो कानून बनाये जाते हैं, इन्हें इसी सूची में शामिल किया जाता है।
  3. संवैधानिक कानून
    संवैधानिक उस कानून को कहते हैं जिसके द्वारा सरकार का ढाँचा निश्चित किया जाता है और जिसके द्वारा राज्य के प्रति नागरिकों के अधिकारों तथा कर्तव्यों का विश्लेषण किया जाता है।
  4. सामान्य कानून
    नागरिकों के दैनिक जीवन एवं आचरण को नियमित करने वाले कानूनों को सामान्य कानून कहते हैं। वे व्यवस्थापिका द्वारा नियमित होते या रीति-रिवाजों और परम्पराओं पर आधारित होते हैं।
  1. प्रशासकीय कानून
    किसी-किसी देश में साधारण नागरिकों से पृथक सरकारी कर्मचारियों के लिए अलग कानून होते हैं। इन कानूनों को प्रशासकीय कानून कहते हैं। ये वे नियम हैं जो राज्य के सभी कर्मचारियों के अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित करते हैं। फ्राँस प्रशासकीय कानून का सर्वोत्तम उदाहरण है।
  2. प्रथागत कानून
    ये देश में प्रचलित रीति-रिवाज और परम्पराओं का विकसित रूप होते हैं और न्यायालय इन्हें मान्यता देकर कानून का रूप प्रदान करते हैं। इंग्लैण्ड में कानून के विकास में रीति रिवाजों ने महत्वपूर्ण भाग लिया है। इसलिए वहाँ ‘कॉमन लॉ’ काफी प्रचलित है।
  3. अध्यादेश
    किसी विशेष परिस्थिति का सामना करने के लिए अथवा किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए, कार्यपालिका के द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए जो आदेश जारी किया जाता है, उसे अध्यादेश कहते हैं। भारत के राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय कानून
    कानून के उपर्युक्त सभी भेद राष्ट्रीय कानून के ही उदाहरण हैं, किन्तु इनके अतिरिक्त भी एक और कानून होता है।


कानून के स्रोत

उत्तर कानून के स्रोत का तात्पर्य उन साधनों से है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कानून के निर्माण में सहायता करते हैं। वर्तमान समय में कानून के निम्नलिखित स्रोत माने जाते हैं –


  1. रीति-रिवाज
    रीति-रिवाज या प्रथाएँ कानून का प्राचीनतम स्रोत हैं। समाज के प्रारम्भिक अवस्था में रीति-रिवाज ही कानून के रूप होते थे। रीति-रिवाज या परम्पराएँ जब लम्बे समय तक प्रचलित रहते हैं तो कालान्तर में उन्हें कानून का रूप प्रदान कर दिया जाता है।
  2. धर्म
    धर्म कानून का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत है। प्रारम्भ में सभी धर्म जीवन प्रणाली के नियमों पर आधारित थे, जिनका सीधा सम्बन्ध उच्च आदर्शों से युक्त कर्त्तव्य होते थे। कालान्तर में धर्म के प्रति अन्धविश्वास के कारण यह रीतियों एवं परम्पराओं के रूप माने जाने लगे।
  3. व्यवस्थापिकाएँ
    प्राचीनकाल में व्यवस्थापन का कार्य राजा अथवा कुछ गिने-चुने लोगों द्वारा किया जाता था किन्तु आधुनिक समय में व्यवस्थापन का कार्य व्यवस्थापिका के द्वारा किया जाता है। जो कि कानून निर्माण का प्रमुख स्रोत है।
  4. न्यायालय के निर्णय
    समय-समय पर न्यायालयों के द्वारा जो निर्णय दिये जाते हैं वे निर्णय आगामी विवादों पर कानून की भाँति मार्गदर्शन करते हैं।
  5. वैज्ञानिक टीकाएँ
    कानूनों के निर्माण व विकास में वैज्ञानिक टीकाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। न्यायलयों में इनको बड़ा सम्मान प्रदान किया जाता है। न्यायाधीश इन टीकाओं से मार्गदर्शन लेते रहते हैं।
  6. औचित्य या न्याय भावना
    औचित्य न्यायधीशों द्वारा निर्मित कानून होते हैं। कई बार न्यायाधीशों को अपने विवेक एवं औचित्य के आधार पर तथा न्याय भावना को ध्यान में रखकर निर्णय करने पड़ते हैं।
  7. दृष्टान्त
    कई बार न्यायालय के समक्ष किसी प्रमाण या कानून के अभाव में न्यायाधीश दृष्टान्तों के आधार पर स्वविवेक से निर्णय देते हैं।














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