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दण्ड को परिभाषित कीजिए कांट एवं जॉन लॉक के दण्ड संबंधी विचारों की व्याख्या कीजिए । Define punishment by Kant and John hindi

 

 दण्ड को परिभाषित कीजिए कांट एवं जॉन लॉक के दण्ड संबंधी विचारों की व्याख्या कीजिए

Define punishment and discuss the thoughts on punishment by Kant and John Locke.

दण्ड को परिभाषित कीजिए कांट एवं जॉन लॉक के दण्ड संबंधी विचारों की व्याख्या कीजिए ।



परिचय

दण्ड एक ऐसा माध्यम है जिसका उपयोग समाज में अनुशासन बनाए रखने और नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। यह समाज के अपराधियों को सुधारने और संभावित अपराधियों को अपराध से रोकने के उद्देश्य से लागू किया जाता है। दण्ड का विचार प्राचीन काल से ही दार्शनिकों और विचारकों के लिए महत्वपूर्ण रहा है। इस संदर्भ में इमैनुएल कांट और जॉन लॉक ने अपने-अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। उनके विचारों का गहन विश्लेषण हमें दण्ड की परिभाषा और इसके नैतिक और सामाजिक पहलुओं को समझने में मदद करता है।


कांट के दण्ड संबंधी विचार

इमैनुएल कांट (1724-1804) जर्मन दार्शनिक थे, जिन्होंने नैतिकता, राजनीति और कानून पर गहन विचार किए। कांट का दण्ड संबंधी सिद्धांत "नैतिक दायित्व" और "सार्वभौमिक नैतिक कानून" पर आधारित है। कांट के अनुसार, दण्ड का मुख्य उद्देश्य न्याय को स्थापित करना है, न कि अपराधी को सुधारना या समाज को सुरक्षित बनाना।

कांट का मानना था कि दण्ड नैतिक रूप से उचित होना चाहिए। यह अपराध के लिए एक न्यायसंगत प्रतिक्रिया होनी चाहिए, जो अपराधी के कर्मों के अनुरूप हो। कांट के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को करता है, तो उसे उसी अनुपात में दण्ड मिलना चाहिए, जिसे कांट ने "रेट्रिब्यूटिव जस्टिस" कहा। उनके अनुसार, न्याय का मुख्य सिद्धांत "विधायी नैतिकता" है, जिसका मतलब है कि दण्ड का उद्देश्य केवल और केवल न्याय की बहाली होना चाहिए।


कांट के विचार में, दण्ड का उद्देश्य किसी भी तरह से लाभकारी या सुधारात्मक नहीं होना चाहिए। उनके लिए दण्ड एक नैतिक आवश्यकतानुसार होता है, जो अपराधी को उसकी नैतिक जिम्मेदारी का एहसास दिलाने का माध्यम है। उन्होंने कहा, "यदि न्याय नष्ट हो जाता है, तो मानव जीवन पृथ्वी पर अपना मूल्य खो देगा।" इस प्रकार, कांट के विचार में दण्ड एक नैतिक कर्तव्य है जिसे न्यायपूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए।


जॉन लॉक के दण्ड संबंधी विचार

जॉन लॉक (1632-1704) एक अंग्रेजी दार्शनिक थे, जिन्होंने राजनीतिक दर्शन, समाजवाद और प्राकृतिक अधिकारों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। लॉक के दण्ड संबंधी विचार "सामाजिक अनुबंध" और "प्राकृतिक कानून" पर आधारित हैं। लॉक के अनुसार, दण्ड का उद्देश्य अपराध को रोकना, अपराधी को सुधारना और समाज की सुरक्षा करना है।


लॉक का मानना था कि समाज में सभी व्यक्तियों के कुछ प्राकृतिक अधिकार होते हैं, जैसे जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति। जब कोई व्यक्ति इन अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उसे दण्डित किया जाना चाहिए। लॉक के अनुसार, दण्ड का उद्देश्य अपराधी को उसके कर्मों का परिणाम भुगतने का एहसास दिलाना और समाज के अन्य सदस्यों को अपराध से बचने के लिए प्रेरित करना है।


लॉक ने दण्ड के तीन मुख्य उद्देश्य बताए:

1. अपराधी को सुधारना: दण्ड का एक मुख्य उद्देश्य अपराधी को सुधारना और उसे समाज के नियमों और मूल्यों के प्रति सचेत करना है।

2. समाज की सुरक्षा: दण्ड के माध्यम से समाज को अपराधियों से सुरक्षित रखना आवश्यक है।

3. निवारक उपाय: दण्ड का उद्देश्य अन्य लोगों को अपराध करने से रोकना और उन्हें समाज के नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना है।

लॉक का मानना था कि दण्ड को न्यायपूर्ण, संतुलित और मानवता के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि दण्ड का अत्यधिक या अनुचित उपयोग नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह समाज में अन्याय और असंतोष को जन्म दे सकता है।


निष्कर्ष

इमैनुएल कांट और जॉन लॉक के दण्ड संबंधी विचारों का विश्लेषण करने से यह स्पष्ट होता है कि दण्ड का उद्देश्य और उसकी न्यायिकता पर उनके दृष्टिकोण में भिन्नता है। जहां कांट ने दण्ड को नैतिक जिम्मेदारी और न्याय की बहाली के रूप में देखा, वहीं लॉक ने इसे समाज की सुरक्षा, अपराधी के सुधार और निवारक उपाय के रूप में देखा। दोनों दार्शनिकों के विचार हमें दण्ड की नैतिकता, उद्देश्य और प्रभाव के विभिन्न पहलुओं को समझने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। इनके विचार आज भी न्यायिक प्रणाली में प्रासंगिक हैं और दण्ड नीति को नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझने में मदद करते हैं।








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