कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत कंपनी का निगमन
Incorporation of a Company Under the Companies Act 2013
Article by : Uniexpro.in
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कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत कंपनी का निगमन
Incorporation of a Company Under the Companies Act 2013
परिचय:
कंपनी का निगमन (Incorporation) किसी भी व्यवसाय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे उसे कानूनी पहचान और सुरक्षा मिलती है। भारत में कंपनी का निगमन कंपनी अधिनियम 2013 (Companies Act 2013) के तहत होता है। इस अधिनियम का उद्देश्य कंपनियों के गठन, संचालन और नियमन के लिए एक व्यवस्थित ढांचा प्रदान करना है। यहां हम कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत कंपनी निगमन की प्रक्रिया और आवश्यकताओं को विस्तार से समझेंगे।
कंपनी के प्रकार:
कंपनी अधिनियम 2013 के तहत विभिन्न प्रकार की कंपनियों का निगमन किया जा सकता है, जैसे:
1. निजी कंपनी (Private Company): इसमें अधिकतम 200 सदस्य हो सकते हैं।
2. सार्वजनिक कंपनी (Public Company): इसमें कम से कम 7 सदस्य होते हैं और सदस्य संख्या की कोई सीमा नहीं होती।
3. एकल सदस्यीय कंपनी (One Person Company - OPC): इसमें केवल एक सदस्य होता है।
4. लाभ-निरपेक्ष कंपनी (Section 8 Company): इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि समाजसेवा होता है।
निगमन की प्रक्रिया:
कंपनी अधिनियम 2013 के तहत कंपनी निगमन की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में विभाजित की जा सकती है:
1. नाम आरक्षण (Name Reservation):
कंपनी के नाम का चयन और आरक्षण सबसे पहला कदम है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है:
- RUN (Reserve Unique Name) फॉर्म: MCA पोर्टल पर RUN फॉर्म भरकर कंपनी के नाम का आरक्षण करना होता है। इसमें दो संभावित नामों का चयन किया जा सकता है।
- नाम की उपलब्धता: MCA द्वारा चुने गए नामों की उपलब्धता की जाँच की जाती है और उनमें से एक को स्वीकृति दी जाती है।
2. डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (DSC) और डायरेक्टर आइडेंटिफिकेशन नंबर (DIN):
- DSC: सभी निदेशकों के लिए डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट प्राप्त करना आवश्यक है। इसे प्रमाणित एजेंसियों से प्राप्त किया जा सकता है।
- DIN: सभी प्रस्तावित निदेशकों के लिए डायरेक्टर आइडेंटिफिकेशन नंबर प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिए DIR-3 फॉर्म भरना होता है।
3. कंपनी निगमन के लिए आवेदन (Incorporation Application):
- SPICe+ (Simplified Proforma for Incorporating Company Electronically Plus) फॉर्म**: MCA पोर्टल पर SPICe+ फॉर्म भरकर निगमन के लिए आवेदन करना होता है। इसमें कंपनी के प्रकार, निदेशकों की जानकारी, पंजीकृत कार्यालय का पता आदि शामिल होते हैं।
- आवश्यक दस्तावेज: SPICe+ फॉर्म के साथ आवश्यक दस्तावेज भी अपलोड करने होते हैं, जैसे निदेशकों की पहचान और पते के प्रमाण, कंपनी के पंजीकृत कार्यालय का पता, आदि।
4. कंपनी के संविधान दस्तावेज (MOA और AOA):
- मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA): इसमें कंपनी के उद्देश्यों और गतिविधियों का विवरण होता है।
- आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (AOA): इसमें कंपनी के संचालन के नियम और विनियम होते हैं। इन दोनों दस्तावेजों को SPICe+ फॉर्म के साथ अपलोड करना होता है।
5. कंपनी की पंजीकरण फीस:
कंपनी के प्रकार और अधिकृत शेयर पूंजी के आधार पर पंजीकरण फीस निर्धारित होती है। यह फीस MCA पोर्टल पर ऑनलाइन जमा करनी होती है।
6. निगमन प्रमाणपत्र (Certificate of Incorporation):
सभी दस्तावेजों और आवेदन की समीक्षा के बाद, MCA द्वारा कंपनी को निगमन प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। यह प्रमाणपत्र कंपनी के अस्तित्व की पुष्टि करता है और कंपनी को एक अद्वितीय कॉर्पोरेट पहचान संख्या (CIN) प्रदान करता है।
आवश्यक दस्तावेज:
कंपनी निगमन के लिए निम्नलिखित दस्तावेजों की आवश्यकता होती है:
1. निदेशकों और सदस्यों के पहचान और पते के प्रमाण।
2. पंजीकृत कार्यालय का पता प्रमाण।
3. MOA और AOA की हस्ताक्षरित प्रतियाँ।
4. PAN कार्ड और आधार कार्ड (भारतीय नागरिकों के लिए)।
5. पासपोर्ट (विदेशी नागरिकों के लिए)।
कंपनी अधिनियम 2013 की महत्वपूर्ण विशेषताएँ:
- निरीक्षण और प्रवर्तन: अधिनियम में कंपनियों के लिए कई निरीक्षण और अनुपालन प्रावधान हैं ताकि कंपनियां कानून के अनुसार कार्य करें।
- ऑडिट और रिपोर्टिंग: अधिनियम में कंपनियों के लिए लेखा और रिपोर्टिंग के कठोर नियम हैं ताकि वित्तीय जानकारी पारदर्शी और सटीक हो।
- अधिकार और कर्तव्य: निदेशकों, सदस्यों और अन्य संबंधित व्यक्तियों के अधिकार और कर्तव्यों का स्पष्ट विवरण होता है।
निष्कर्ष:
कंपनी अधिनियम 2013 के तहत कंपनी का निगमन एक संरचित और सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जो व्यवसाय को कानूनी पहचान और सुरक्षा प्रदान करती है। सही दस्तावेज और प्रक्रिया का पालन करके कोई भी व्यवसायी आसानी से अपनी कंपनी का निगमन कर सकता है और अपने व्यवसाय को कानूनी मान्यता दिला सकता है। निगमन के बाद, कंपनी को अपने संचालन के दौरान सभी कानूनी और नियामकीय प्रावधानों का पालन करना आवश्यक होता है ताकि वह सुचारू रूप से कार्य कर सके और कानूनी सुरक्षा का लाभ उठा सके।
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