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How is the State Information Commission Constituted? HINDI ME राज्य सूचना आयोग का गठन किस प्रकार से किया जाता है ? स्पष्ट कीजिए ।

राज्य सूचना आयोग का गठन किस प्रकार से किया जाता है ? स्पष्ट कीजिए ।

How the State Information Commission is constituted ? Clarify.

How is the State Information Commission Constituted? Complete Guide with Important Sections, Examples, and Case Laws"

राज्य सूचना आयोग का गठन कैसे होता है?

How is the State Information Commission Constituted? Complete Guide with Important Sections, Examples, and Case Laws"

राज्य सूचना आयोग (State Information Commission) का गठन सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005) के तहत किया जाता है। यह आयोग राज्य में नागरिकों को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बनाया जाता है।

आइए इसे आसान शब्दों में समझते हैं:


राज्य सूचना आयोग का मतलब क्या है?

राज्य सूचना आयोग एक ऐसा संस्थान है जो यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को सरकारी विभागों से सही और समय पर जानकारी मिले। अगर कोई विभाग जानकारी देने से मना करता है या देरी करता है, तो यह आयोग उस मामले को हल करता है।


राज्य सूचना आयोग का गठन कैसे होता है?

1. संविधान का प्रावधान

राज्य सूचना आयोग का गठन सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के धारा 15 के तहत होता है।
इसमें शामिल होते हैं:

  • मुख्य सूचना आयुक्त (State Chief Information Commissioner)
  • सूचना आयुक्त (State Information Commissioners)

2. नियुक्ति प्रक्रिया (Section 15(3))

राज्य सूचना आयोग के सदस्यों की नियुक्ति एक समिति करती है। यह समिति इस प्रकार होती है:

  1. राज्यपाल (Governor) – नियुक्ति का अंतिम निर्णय लेते हैं।
  2. मुख्यमंत्री – अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  3. विपक्ष के नेता (Leader of Opposition) – सदस्य।
  4. कैबिनेट मंत्री – एक और सदस्य।

3. योग्यता (Section 15(5))

राज्य सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त बनने के लिए व्यक्ति को:

  • प्रशासन, न्यायपालिका, शिक्षा, विज्ञान, या किसी अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र में अनुभव होना चाहिए।
  • वह किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं होना चाहिए।
  • 65 साल की उम्र के बाद व्यक्ति इस पद पर काम नहीं कर सकता।

मुख्य जिम्मेदारियां

राज्य सूचना आयोग की मुख्य जिम्मेदारियां हैं:

  1. सरकारी अधिकारियों को पारदर्शिता बनाए रखने के लिए निर्देश देना।
  2. आरटीआई आवेदनों में देरी या गलत जानकारी पर कार्रवाई करना।
  3. नागरिकों को उनकी मांगी गई जानकारी दिलाना।
  4. जो भी अधिकारी गलती करता है, उस पर जुर्माना लगाना।

महत्वपूर्ण धाराएं (Sections)

  1. धारा 15 – राज्य सूचना आयोग का गठन।
  2. धारा 18 – शिकायतों की सुनवाई।
  3. धारा 19(3) – दूसरी अपील राज्य सूचना आयोग में।
  4. धारा 20 – जानकारी न देने पर जुर्माना।

उदाहरण (Example)

मान लीजिए, एक किसान ने जल विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी कि उसके गांव में पिछले 5 साल में कितने तालाब बनाए गए।
अगर विभाग जानकारी देने में देरी करता है या गलत जानकारी देता है, तो किसान राज्य सूचना आयोग में शिकायत कर सकता है। आयोग संबंधित अधिकारी से जवाब मांगकर जानकारी दिलवाएगा।


महत्वपूर्ण केस (Case Laws)

  1. केस: नागेश्वर राव बनाम तेलंगाना राज्य सूचना आयोग (2022)
    इस केस में आयोग ने स्पष्ट किया कि अगर कोई अधिकारी जानबूझकर जानकारी नहीं देता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।

  2. केस: शैलेश गांधी बनाम महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग (2018)
    इस केस में बताया गया कि सभी सरकारी विभागों को समय पर जवाब देना जरूरी है।


राज्य सूचना आयोग का प्रभाव

राज्य सूचना आयोग की मदद से:

  1. आम लोगों को उनकी मांगी गई जानकारी आसानी से मिलती है।
  2. सरकारी विभाग अधिक जवाबदेह बनते हैं।
  3. भ्रष्टाचार में कमी आती है।
  4. नागरिकों का प्रशासन पर भरोसा बढ़ता है।

निष्कर्ष

राज्य सूचना आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है और सरकारी प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाता है। आयोग की मदद से लोग अपनी समस्याओं को हल कर सकते हैं और सरकार से जुड़ी जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

याद रखें: अगर आपको कोई जानकारी नहीं मिल रही है, तो राज्य सूचना आयोग में अपील करना आपके अधिकार में है।

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