Charter Of 1726
1726 का राजपत्र
सन् 1726 ईस्वी से पहले ब्रिटिश भारत के अलग-अलग प्रेसीडेंसी नगरों में न्याय वितरण का प्रबंध और विकास का क्रम अलग अलग रूप में हुआ जिसके अपने-अपने ऐतिहासिक कारण रहे थे । सन् 1726 ईस्वी के राजपत्र के द्वारा ऐसी न्याय-व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया जिसके अनुसार प्रत्येक प्रेसीडेंसी नगर में समान संरचना और समान न्याय अधिकार वाली मेयर कोर्ट की स्थापना की गयी । न्यायालयों में प्रयोग होने वाली व्यवस्था तथा निर्णय-पद्धति में भी समानता रखी गई । राजपत्र 24 सितम्बर, सन् 1726 ईस्वी को ब्रिटिश अधिराट् जार्ज प्रथम के द्वारा स्वीकृत किया गया । सन् 1726 ईस्वी के राजपत्र के पहले विकास के काम में लगी हुई कम्पनी की भारत के उपनिवेश के लिए नियम भी इस राजपत्र के माध्यम से संशोधित की गयी ।
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British india (Kolkata) 1726 C.E |
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Charter Of 1726 in Hindi (British india map) |
राजपत्र 1726 के कारण (Cause of Charter)
सन् 1726 ईस्वी के राजपत्र को जारी करने के निम्न कारण हैं :-
1. कम्पनी की उस समय की न्याय-व्यवस्था से असंतोष और बदलाव करने की इच्छा (Reform in existing system)
कम्पनी ने राजपत्र को जारी करने की मांंग करने वाले प्रार्थना-पत्र में ज़िक्र किया था कि बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि क्षेत्रों में एक एक ऐसे न्यायालय की स्थापना अनिवार्य है जो नियमित, तर्क-संगत और जल्दी से जल्दी फ़ैसला सुना सके और जिसमें सामान्य और जघन्य दोनों हि प्रकार के अपराध तय किया जा सके ।
इस प्रकार के ज़िक्र से कम्पनी का उद्देश्य साफ तौर पर स्पष्ट हो जाता है कि सन् 1726 ईस्वी के राजपत्र का कारण कम्पनी की सुधार के प्रति सहज रुचि ही थी । लेकिन हमें जो व्यावहारिक प्रमाण और काग़ज़ी विवरण मिले हैं उससे ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता जिससे यह पता चल सके कि सन् 1726 ईस्वी के पहले की न्याय-व्वस्था कम्पनी के लिए असंतोष जनक रही हो । बल्कि हमें जो सबूत मिलते हैं वो तो इसके उलट कुछ और ही बातें बयान करती हैं कि सन् 1726 ईस्वी के पहले अलग-अलग प्रेसीडेंसी नगरों में स्थापित न्याय-व्यवस्था स्थानीय लोगों के लिए काफ़ी सक्षम और उपयोगी थी ।
2. कम्पनी के द्वारा स्थापित न्यायालयों की ब्रिटेन में मान्यता से संबंधित प्रश्न (Recognition of Court Established by Company)
सन् 1726 ईस्वी के राजपत्र के बाद कुछ पत्र-व्यवहारों के द्वारा एक और दूसरे कारण का भी इसारा मिलता है । कम्पनी के द्वारा स्थापित अनेक अदालतें और उसमें काम करने वाले न्यायाधीशों के स्तर की स्वीकृति ब्रिटिश न्याय-व्यवस्था में प्राप्त नहीं हो सकी थी। समस्त न्याय-पद्धति को कम्पनी के स्तर की ही मान्यता मिली हुई थी । कम्पनी के न्यायालयों के निर्णयों की मान्यता ब्रिटेन में नहीं थी। इसीलिए कम्पनी को ऐसी अदालत की जरूरत थी जिसके अस्तित्व की मान्यता ब्रिटिश व्यवस्था में भी हो सके ।
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