नंदकुमार का मामला 1775
Trial Of Maharaja Nandkumar in Hindi
Nandkumar Case 1775 in Hindi
सुप्रीम कॉर्ट के प्रमुख ऐतिहासिक निर्णय
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Trail of Raja Nandkumar 1775 in Hindi |
Raja Nandkumar case 1775 in Hindi
नन्दकुमार का Case 1775
नन्दकुमार का मामला कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस मामले की पृष्ठभूमि इतिहास के तमाम प्रमुख पत्रों के चरित्र चित्रण में योगदान रखती है । भारतीय विधि प्रणाली में अंग्रेज़ी विधि के शिलान्यास की घटना इस मामले में बहुत ज्यादा चर्चा में आई है ।
राजा नंदकुमार
राजा नंदकुमार बंगाल का एक प्रमुख और प्रभावशाली ब्राह्मण था । वह ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मातहत भारतीय टैक्स अधिकारी था । उसे 1764 ईस्वी में हेस्टिंग के स्थान पर वर्दवान का कलेक्टर बनाया गया था जिससे वारेन हेस्टिंग्स नंदकुमार को दुश्मनी की नज़र से देखता था। 11-13 March , 1775 C.E (ईस्वी) के बीच नंदकुमार ने वारेन हेस्टिंग के खिलाफ गवर्नर जर्नल की काउंसिल को कई पत्र लिखा था। काउंसिल ने बहुमत के आधार पर उन पत्रों में उल्लेखित घूसखोरी के आरोपों की जांच करने के लिए लंदन में कम्पनी के एटार्नी को प्रस्ताव भी भेज दिया था। उसके खिलाफ जालसाजी का आरोप लगाया गया और अंग्रेज़ी कानून के अनुसार उसे फांसी पर लटका दिया गया ।
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Maharaja Nandkumar |
पृष्ठभूमि
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नंदकुमार case 1775 |
1. बर्दवान की रानी का आरोप
बर्दवान कि रानी का मामला नंदकुमार एवं वारेन हेस्टिंग्स के बीच मुठभेड़ की शुरुआत है । सन् 1774 ईस्वी में बर्दवान कि रानी ने हेस्टिंग्स के खिलाफ आरोप लगाया कि वारेन हेस्टिंग्स ने 16,000 रुपए घूस लेकर उसके नाबालिक लड़के को राजा की मृत्यु के बाद दीवान बनाया । आरोपपत्र पाते ही परिषद् ने कार्यवाही शुरू कर दी परन्तु हेस्टिंग्स ने अपने खिलाफ आरोप सुनने से इंकार करके सभा समाप्त कर दी । आरोप में नंदकुमार का सहयोग कहा जाता है ।
2. मुन्नी बेगम का मामला
मुन्नी बेगम बंगाल के नवाब की संरक्षिका नियुक्त थीं । सन् 1775 ईस्वी में मुर्शिदाबाद की परिषद् ने जांच के बाद यह निश्चय किया कि उसने बहैसियत संरक्षिका, 9,67,693 रुपए खर्च किया है जो आवश्यक धनराशि से काफी ज्यादा थी । मुन्नी बेगम ने हिसाब देते समय 1,50,000 रुपए की धनराशि हेस्टिंग्स को भेंट में दिखाया को प्रमाणित भी हो गई । हेस्टिंग्स का दावा था कि उस समय तक पार्लियामेंट द्वारा ऐसी भेंट अवैध घोषित नहीं हुई थी । ऐसा कहा जाता है कि मुन्नी बेगम के मामले की सारी पैरवी राजा नंदकुमार की निगरानी में संपन्न हुई थी ।
3. हेस्टिंग्स के खिलाफ आरोप (11 मार्च 1775 ईस्वी)
नंदकुमार ने हेस्टिंग्स के खिलाफ आरोप लगाया कि नाबालिक नवाब मुबारक की संरक्षिका बनाने में हेस्टिंग्स ने मन्नी बेगम से 3.5 लाख घूस लिया है। नंदकुमार को आरोप साबित करने के लिए काउंसिल में हाज़िर भी होना चाहिए । वारेन हेस्टिंग्स ने काउंसिल को अपने खिलाफ आरोप सुनने का अधिकारी नहीं माना । काउंसिल ने मामला सुना । हेस्टिंग्स ने सभा छोड़ दी तथा परिषद् का निर्णय हुआ कि हेस्टिंग्स इस रकम को वापस करे । हेस्टिंग्स ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया । नंदकुमार के इस आरोप की पुष्टि कर दी ।
4. कलामुद्दिन द्वारा नंदकुमार के खिलाफ आरोप (19 अप्रैल 1775)
उपर्युक्त आरोप से हेस्टिंग्स को काफी सदमा पहुंचा और उसने नंदकुमार, जो परिषद् के बहुमत से सुरक्षित किया जाता था, को दूर करने की योजना सोची । उसी प्रेरणा से कमालुद्दीन नामक व्यक्ति ने नंदकुमार के खिलाफ यह पेटिशन सुप्रीम कोर्ट में लगाया कि नंदकुमार ने हेस्टिंग्स के खिलाफ झूठे आरोप लगाया है ।
नंदकुमार के मामले के तथ्य (Facts of Nandkumar's Case)
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Supreme Court - Nandkumar Case 1775 |
विचारणीय प्रश्न
मामले का तथ्य बहुत साफ है, परन्तु इसका विशेष महत्व अन्य कारणों से है। नन्दकुमार का दुर्भाग्य राजनैतिक कुचक्र का परिणाम था। हेस्टिंग्स और उनके मित्र इलिजा इम्पे की आपसी सांठ-गांठ द्वारा प्रशासन में हेस्टिंग्स का रास्ता साफ करना इसका उद्देश्य था जो परिषद् पर नियंत्रण न होने से सरकार द्वारा कभी संभव न था । इतिहासज्ञों ने 'न्यायिक हत्या' कह कर निंदित किया । नंदकुमार को उसके दुस्साहस का परिणाम मिला और हेस्टिंग्स का क्रोध इसका मूल कारण था । इम्पे के चीफ जस्टिस पद के दरम्यान, नंदकुमार को फांसी पर लटका कर सुप्रीम कोर्ट ने तहलका मचा दिया कि प्रभावशाली लोग भी यद्यपि सरकार के दुश्चक्र से परे हो सकते हैं, पर न्याय के कुचक्र से परे नहीं । जिस रूप में मामला चला और शीघ्रता से सजा कार्यान्वित की गई तथा सुप्रीम कोर्ट के सुरक्षित अधिकार, जिससे मामला उपयुक्त होने पर ब्रिटिश बादशाह को दया (Mercy) के लिए भेजा जाता था, का प्रयोग ना किया जाना नंदकुमार की इस उद्देश्य से दी गई दरख्वास्त की संक्षेप में अश्विकृती आदि तमाम ऐसे दृष्टांत हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट की सद्भावना एवं निष्पक्षता पर संदेह प्रकट किया जाता है । साक्षियों की इतनी जबर्दस्त जिरह किसी न्यायाधीश द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पिछले इतिहास में कभी नहीं हुई थी । नंद कुमार को सजा ऐसे परिनियम के अंदर दी गई थी जो कलकत्ता में कभी लागू ही नहीं किया था । नंदकुमार के व्यक्तिपरक कानून (हिंदू विधि और ना हि मुस्लिम विधि) ने जालसाजी के लिए फांसी की सजा निर्धारित नहीं की थी ।
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