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राज्य की उत्त्पति का विकासवादी सिद्धान्त

राज्य की उत्त्पति के विकासवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिए । 

अथवा 

राज्य की उत्त्पति के विकासवादी सिद्धान्त की विवेचना कीजिए । 

अथवा 

राज्य की उत्त्पति के विभिन्न सिद्धान्त कौन - कौन से हैं ? इनमे से कौन - सा सिद्धान्त सर्वाधिक संतोषप्रद है और क्यों ? 


evolutionary theory of the origin of the State in Hindi
evolutionary theory of the origin of the State 

राज्य की उत्त्पति का विकासवादी सिद्धान्त 

राज्य की उत्त्पति से संबंधित सभी सद्धांत, जैसे - दैविक सिद्धान्त, सामाजिक समझौता सिद्धान्त, शक्ति सिद्धान्त और पैतृक व मातृक सिद्धान्त अपने दोषों के कारण अमान्य हो चुके थे । तभी डार्विन के विश्व को झकझोरने वाले जैविक सिद्धान्त ने समाज शास्त्रियों और राजनीतिक वैज्ञानिकों को भी अपनी ओर आकर्षित किया । राजनीति शास्त्रियों ने राजनीति के क्षेत्र में भी विकासवादी सिद्धान्त का प्रतिपादन शुरू कर दिया है । उन्होनें राज्य की उत्पत्ति से संबंधित पुरानी मान्यताओं पर प्रहार करके यह मत व्यक्त किया कि राज्य की उत्त्पति स्वाभाविक तथा क्रमिक विकास का परिणाम है। राज्य की उत्त्पति के विकासवादी सिद्धान्त को वैज्ञानिक प्रमाणिकता और तार्किकता के कारण प्रबल समर्थन मिलने लगा । 

 राज्य की उत्त्पति के विकासवादी सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्त्पति किसी समय विशेष में नहीं हुई, बल्कि बहुत प्राचीनकाल से धीरे-धीरे विकसित होने से हुई है। धीरे-धीरे मानव संस्थाओं का विकास हुआ, फिर उनका समाजीकरण और राजनीतिकरण होने लगा और फिर इनका विस्तार होने के साथ ही राज्य का विकास भी होता गया। 

बर्गेश  के शब्दों में, "राज्य का जन्म इतिहास से हुआ है। यह मानव समाज का निरन्तर विकास है, जिसका आरंभ अत्यन्त अधूरे और विकृत किन्तु उन्नतिशील रूपों में अभिव्यक्त होकर मनुष्यों के एक समग्र और सार्वभौम संगठन की ओर विकसित हुआ।" 

 विकासवादी सिद्धान्त से संबंधित विचारों को 19वीं सदी में व्यवस्थित रूप अवश्य दिया गया है, किन्तु बहुत पहले अरस्तू ने अपनी पुस्तक पॉलिटिक्स में लिखा था कि "राज्य एक स्वाभाविक संस्था है, जो निरन्तर विकास का परिणाम है।" इसके बाद हीगल और स्पेंसर ने भी राज्य को एक विकसित संस्था माना है। 

                                      किन्तु राज्य के विकास का सिलसिला शुरू कब हुआ, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। इसी तरह यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता कि राज्य के विकास में किन-किन तत्वों ने योगदान दिया है। वैसे राज्य के विकास में किसी एक तत्व का महत्व नहीं है। ऐसे अनेक तत्व हैं, जिन्होंने राज्य को विकसित होने में मदद की है। 

गैटेल का कथन है कि "राज्य का दूसरी सामाजिक संस्थाओं की तरह कई स्रोतों और परिस्थितियों में विकास हुआ और अदृश्य रूप से इसका अस्तित्व बन गया। आदिम सामाजिक संस्थाओं और आदिम राज्यों में कोई अंतर नहीं किया जा सकता, जो धीरे-धीरे एक-दूसरे में सम्मिलित हो गयी।" 

राज्य के विकास में जिन तत्वों का विशेष योगदान है, वे इस प्रकार हैं - 

1. मानव स्वभाव 

 अरस्तू का कथन है कि "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, मनुष्य का एक मूलभूत स्वभाव है कि वह एकाकी नहीं रह सकता, वह अन्य मनुष्यों के संपर्क में भी आना चाहता है। मनुष्य का यह स्वभाव ही राज्य की विकास कि पहली सीढ़ी है। मनुष्य अपनी सामाजिक प्रवृत्ति के कारण ही निजी दायरे से बाहर निकला और दूसरे मनुष्य के संपर्क में आया, इससे उसका क्षेत्र विस्तृत हो गया। इस विस्तृत क्षेत्र को व्यवस्थित रखने के लिए एक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई, जो समाज में नियम आदि बना सके उसका पालन करा सके और ऐसे हि संगठन के निर्माण के साथ-साथ राज्य का रूप परिष्कृत होता गया। अतः मानव स्वभाव राज्य के विकास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सहायक तत्व है। 

विल्सन के शब्दों में, "राज्य के विकास में मनुष्यों की सूझ-बूझ या चयन का प्रभाव रहा है। 

2. रक्त - सम्बन्ध

प्रोफेसर गैटेल के अनुसार, "रक्त सम्बन्ध के बंधन से परस्पर अधीनता एवं एकता के भाव प्रबल हुए जो राजनीतिक जीवन के लिए अनिवार्य हैं।" मनुष्य के जीवन में रक्त - सम्बन्ध का महत्व प्राचीनकाल से ही रहा है। प्रारंभिक काल में रक्त - सम्बन्ध के आधार पर ही मनुष्य ने संगठित होना शुरू किया। 

                                 परिवार मनुष्य का पहला संगठन था। धीरे धीरे परिवार का क्षेत्र बढ़ा और रक्त सम्बन्ध के आधार पर ही कुटुंब बने। कुटुंब से कबीलों का जन्म हुआ।  रक्त - सम्बन्ध के आधार पर बने इन कबीलों में राज्य के सभी आवश्यक तत्व विद्यमान थे। इनमे एक सरदार होता था, जिसकी आज्ञा का मानना सभी के लिए जरूरी होता था, क्योंकि आज्ञा का उल्लंघन करने पर दण्ड दिया जाता था। इससे मनुष्य में एकता और अनुशासन की भावना का विकास हुआ को जो राज्य का मुख्य आधार बना। 

मैकाइवर के शब्दों में, "जैसे - जैसे पीढ़ियों के द्वारा रक्त - बंधन अलक्षित रूप में विस्तृत भाई - चारे के सामाजिक बंधन में परिवर्तित हुआ। पिता का अधिकार मुखिया की शक्ति को मिला। रक्त - सम्बन्ध की रक्षा के अधीन समूह के लिए स्वरूपों का आविर्भाव हुआ जो उससे अधिक श्रेयस्कर है। रक्त - सम्बन्ध समाज की रक्षा करता है और अंततः राज्य की रचना करता है।" 

3. धर्म 

 राज्य के विकास में धर्म का भी महत्वपूर्ण योगदान है। प्रारंभ में जबकि मनुष्य असभ्य था, वह प्राकृतिक चमत्कारों को भय और आश्चर्य से देखता था तथा इनकी उपासना करता था। यहीं धर्म का जन्म हुआ। चूंकि मनुष्य धर्म से भयभीत था, अतः इसके द्वारा ही असंगठित समाज को व्यवस्थित किया जाने लगा। धर्म के द्वारा ही अराजकता और पाश्विकता का अंत हुआ तथा सद्व्यवहार के नियम बने। 

गेटेल ने स्वीकार किया है कि "राजनैतिक विकास के प्रारंभिक एवं अत्यंत कठिन काल में धर्म ही बर्बरतापूर्ण अराजकता का नाश कर सका। इस अनुशासन तथा सत्ता के प्रति आदर भाव को उत्पन्न करने में, जो शासन के अचार हैं, सहस्त्रों वर्ष लगे।"

  आगे चलकर धर्म राजनीतिक सत्ता के स्रोत भी बनने लगे थे। एक समय तो राजनीतिक और धार्मिक सत्ता एक हो व्यक्ति में निहित होने लगी थी। जब राजनीतिक सत्ता और धार्मिक सत्ता पृथक् हुई, तब इनमें जंग भी छिड़ी। तब पराजित हो जाने पर धर्म का अन्त नहीं हो गया, बल्कि वह मनुष्य में नैतिक शक्ति का संचार करता रहा तथा उन्हें एक सूत्र में बांधता रहा। राज्य के विकास में धर्म के विशेष महत्व के कारण ही डॉ. इकबाल नारायण श्रीवास्तव ने कहा है, "संगठन और एकता के लिए धर्म एक महत्वपूर्ण तत्व रहा है। धर्म ने मनुष्य को अनुशासन तथा आज्ञापलन सिखाया है। धर्म और राजनीति में अंतर नहीं रहा है। आज भी कहीं कहीं धर्म का राजनीति से घनिष्ठ सम्बन्ध है।" 

4. शक्ति 

 राज्य की उत्त्पति और विकास में शक्ति तत्व का भी महतत्वपूर्ण योगदान रहा है, जैसे कि मैकाइवर ने कहा है, "यद्यपि राज्य का उदय शक्ति के द्वारा नहीं हुआ, तथापि शक्ति ने राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भाग लिया है।" इसीलिए कई राजनीतिक वैज्ञानिक राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन न मानते हुए शक्ति का अध्ययन मानते हैं।  आधुनिक युग में तो शक्ति राज्य का प्रमुख स्रोत है ही, आदिकाल में भी मनुष्य के जीवन में शक्ति का महत्वपूर्ण स्थान था। आदिकाल में विभिन्न कबीलों में युद्ध होते थे। जो कबीला विजयी होता था, वह पराजित कबीले को अपने कबीले में मिला लेता था और पराजित कबीला विजयी कबीले की सरकार की आज्ञा का पालन करता था। अतः युद्ध के द्वारा हो प्रजा और शासक के भाव का विकास हुआ। अधिक शक्तिशाली कबीला अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करता गया और आगे चलकर इन कबीलों के सरदार ही शासक बने। 

                                        कई राज्यों का निर्माण शक्ति के कारण ही हुआ है। जैक्स का कथन बड़ी सरलता से सिद्ध किया जा सकता है कि "अधिकांश राज्यों का जन्म युद्ध और विजय के कारण हुआ। अलग अलग स्थान में विजयी नेताओं ने विजित लोगों पर भिन्न भिन्न प्रकार से शासन करना प्रारंभ किया, जिससे अनेक प्रकार की शासन व्यवस्थाओं की शुरुआत हुई। आगे चलकर राज्यों का जन्म भी इसी प्रक्रिया में हुआ।"

5. आर्थिक गतिवधियां 

 डॉ. ओम नागपाल के शब्दों में, "मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता भोजन है और इसे प्राप्त करने के प्रयासों से ही राज्यों के विकास का क्रम प्रारंभ होता है।" मार्क्स भी यह मानते है कि "मानवजाति वका इतिहास आर्थिक गतिविधियों का ही इतिहास है।" 

                                    आदिम युग में जबकि सभ्यता तथा कृषि का विकास नहीं हुआ था, मनुष्य अपना भोजन प्रकृति से ही प्राप्त करता था और भोजन प्राप्ति के लिए वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता रहता था। फिर मनुष्य ने अपने भोजन के लिए पशु - पक्षियों को पालना शुरू किया किन्तु तब भी उनकी भोजन सम्बन्धी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती थी। जैसा कि कहा जाता है - "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" , मनुष्य ने कृषि का आविष्कार किया। जब मनुष्य कृषि करने लगा तो उसके लिए जरूरी था कि वह खानाबदोश की जिंदगी छोड़कर एक स्थान पर बस जाये। अतः वह खेतों के आस - पास ही बसने लगे। इससे ग्राम (गांव) बने। 

                                कृषि के कारण ही मनुष्य में अपनी संपत्ति की भावना विकसित हुई और स्वामित्व को लेकर विभिन्न ग्रामों में युद्ध होने लगे। अतः युद्धों में विजयी होने तथा अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए एक ग्राम के सभी व्यक्ति संगठित होने लगे तथा परस्पर सहयोग की भावना विकसित हुई। मनुष्य की आश्यकताएं और बढ़ने से श्रम - विभाजन तथा उद्योगों का विकास हुआ। ग्राम नगरों में परिवर्तित होने लगे और ये ग्राम और नगर ही राज्य के प्रमुख आधार बने। 

गैटेल के अनुसार, "मनुष्य की आर्थिक चेष्टाएं जिनके द्वारा मनुष्य ने मौलिक अपेक्षाओं की संतुष्टि की और बाद में संपत्ति तथा धन का संचार किया, राज्य के निर्माण में सहायक तत्व रहे हैं।" और एडम स्मिथ ने तो ' Wealth Of Nation" में यहां तक कहा है कि "जहां संपत्ति नहीं, वहां राज्य की भी आवश्यकता नहीं।" 

6. राजनीतिक चेतना

 राज्य के विकास में मानव - स्वभाव, रक्त  - स्वभाव, धर्म, आर्थिक आवश्यकता और शक्ति के साथ ही राजनीतिक चेतना का विशेष महत्व है।

 गिलक्राईस्ट के अनुसार, "राज्य निर्माण के सभी तत्वों की तह में राजनीतिक चेतना एक ऐसा तत्व है, जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।" कृषि युग में पदार्पण के साथ ही मनुष्य का आर्थिक विकास प्रारंभ ही चुका था। अब मनुष्य एक निश्चित भू - भाग पर बसने लगे थे, जिससे ग्रामों का विकास हुआ। मनुष्य में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी, किन्तु इन ग्रामों में आंतरिक व्यवस्था बनाये रखने तथा बाह्य आक्रमणों से संपत्ति की सुरक्षा के लिए मनुष्य को किसी मजबूत संगठन की आवश्यकता महसूस हुई। यह भावना ही मनुष्य की राजनीति चेतना की द्योतक है। 

 जेलिनेक ने कहा है, "राज्य की उत्पत्ति का आंतरिक कारण व्यक्तियों के एक समूह में संगठित होकर अभिव्यक्त करते हैं और स्वयं इसके क्रियाशील सदस्य बन जाते हैं। 

          इस प्रकार राज्य की उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धान्त के समर्थकों का यह मानना है कि राज्य एक प्राकृतिक संस्था है, जो कि निरन्तर विकास का परिणाम है और इसके विकास में अनेक तत्व सहायक रहे हैं। इसकी पारस्परिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप जो स्थिति उत्पन्न हुई, वही राज्यों के विकास का कारण बनी। वर्तमान विभिन्न वैज्ञानिक अन्वेषणों से भी इस बात की पुष्टी हो गयी कि राज्य ऐतिहासिक विकास का ही परिणाम है। इसीलिए राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विकासवादी सिद्धान्त को सभी स्वीकार करते हैं। यह सर्वमान्य है। 

निष्कर्ष

 राज्य की उत्त्पति के सम्बन्ध में ऐतिहासिक या विकासवादी सिद्धान्त ही सर्वाधिक मान्य है जिसके अनुसार किसी एक तत्व के द्वारा नहीं बल्कि मूल सामाजिक प्रवृत्ति, रक्त सम्बन्ध, धर्म, शक्ति, आर्थिक गतिविधियों और राजनीतिक चेतना सभी के द्वारा सामूहिक रूप से राज्य का विकास किया गया है। रक्त सम्बन्ध पर आधारित परिवार राज्य का सबसे प्राचीन रूप था, धर्म ने इन परिवारों को एकता प्रदान की और आर्थिक गतिविधियों ने व्यक्तिओं को संगठित होने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही शक्ति और राजनीतिक चेतना ने राज्य के रूप को स्पष्टता और व्यापकता प्रदान की।  इस प्रकार राज्य का उदय हुआ और उसने विकास करते - करते अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया।   

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