अफ्रीका से हिंदुस्तान तक मानव जाति का सफ़र का समय क्रम
![]() |
अफ्रीका से हिंदुस्तान तक मानव जाति का सफ़र का समय क्रम |
भारत के प्रागैतिहास में आधुनिक मनुष्य का एक संक्षिप्त कालक्रम
300,000 साल पहले :
आधुनिक मनुष्य, होमो सेपियन्स, के अब तक प्राप्त प्राचीनतम अवशेषों का युग। ये अवशेष मोरक्को में साफ़ी नगर से क़रीब पचास किलोमीटर दूर ज़ीबेल इरहाउद की एक गुफ़ा में पाए गए थे।
180,000 साल पहले :
अफ़्रीका से बाहर पाए गए आधुनिक मनुष्य के प्राचीनतम जीवाश्मों का युग। ये जीवाश्म उत्तरी इज़रायल में मिस्लिया के एक शैलाश्रय में पाए गए थे।
70,000 साल पहले :
आनुवांशिकी के आकलन के मुताबिक़ अफ़्रीका से लोगों का प्राचीनतम कामयाब निष्क्रमण (माइग्रेशन) इसी समय के आस-पास हुआ था। इस निष्क्रमण को ‘कामयाब’ इसलिए कहा गया था, क्योंकि ये प्रवासी ही आज की समस्त ग़ैर-अफ़्रीकी आबादियों के पूर्वज हैं। (इसके पहले अफ़्रीका से बाहर निकले आधुनिक मनुष्यों ने ऐसी कोई वंशावली नहीं छोड़ी है, जिसको आज चिह्नित जा सकता हो।) इसकी पूरी संभावना है कि 70,000 वर्ष पहले अफ़्रीका से बाहर निकले प्रवासियों ने दक्षिणी मार्ग अपनाया हो, जो उनको अफ़्रीका से (ख़ासतौर से आधुनिक समय के एरिट्रिया और जिबूती से), लाल सागर के दक्षिणी सिरे पर स्थित बाब अल मंदेब के रास्ते एशिया (आधुनिक समय के यमन) में ले गया हो।
65,000 साल पहले :
अफ़्रीका से बाहर निकले प्रवासी भारत पहुँचते हैं और उनका सामना आदि मानवों की बलशाली आबादी से होता है। वे ख़ुद को इस उपमहाद्वीप की उन अन्य होमो प्रजातियों से दूर रखने के लिए जिनका मध्य और दक्षिणी भारत पर वर्चस्व था, हिमालय की तलहटी का ज़मीनी मार्ग और तटीय मार्ग, दोनों अपनाते हैं, और फिर भारतीय उपमहाद्वीप के पार दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया चले जाते हैं।
60,000-40,000 साल पहले :
इस कालखण्ड के दौरान दक्षिण अफ़्रीका से बाहर निकले प्रवासियों के वंशज मध्य एशिया और यूरोप को आबाद करते हैं।
40,000 साल पहले :
यूरोप से निएंडरथल विलुप्त हो जाते हैं। दक्षिण-पश्चिम यूरोप का इबेरिया प्रायद्वीप (आधुनिक समय के पुर्तगाल और स्पेन) उनका आख़िरी शरण-स्थल और ठिकाना साबित होता है।
45,000-20,000 साल पहले :
अफ़्रीका से बाहर निकले प्रवासियों के वंशज प्रथम भारतीय सूक्ष्मपाषाणीय प्रौद्योगिकी (माइक्रोलिथिक टेक्नॉलॉजी) का इस्तेमाल करना आरम्भ करते हैं, और मध्य तथा पूर्वी भारत में उनकी आबादी में तेज़ी-से वृद्धि होती है। दक्षिण एशिया वह जगह बन जाती है, जहाँ ‘मानव-जाति का अधिकांश हिस्सा’ रहता है। आधुनिक मनुष्य उस जगह पहुँचते हैं, जो शायद दक्षिण और मध्य भारत में अन्य होमो प्रजातियों का लम्बे समय से स्थापित शरण-स्थल रहा था।
16,000 साल पहले (ईसा पूर्व 14,000) :
आधुनिक मनुष्य अमेरिका पहुँचते हैं, वह अन्तिम बड़ा महाद्वीप, जहाँ आधुनिक मनुष्य साइबेरिया और अलास्का के बीच का ज़मीनी पुल बेरिंजिया (लैंड ब्रिज) पार करने के बाद जाकर बसते हैं।
7000 साल ईसा पूर्व :
बलूचिस्तान की बोलान पहाड़ियों की तलहटी में स्थित, आज मेहरगढ़ के नाम से ज्ञात एक गाँव में एक नई खेतिहर बस्ती की शुरुआत होती है, जो आगे चलकर अन्ततः सिन्धु और भूमध्यसागर के बीच अपने समय की सबसे बड़ी बसाहट बनती है।
7000-3000 साल ईसा पूर्व :
इस समय के आस-पास ज़ेग्रॉस क्षेत्र के ईरानी कृषकों का एक समूह दक्षिण एशिया पहुँचता है, जिसके नतीजे में प्रथम भारतीयों के वंशजों के साथ उनका मिश्रण होता है। आनुवांशिकीविदों का आकलन है कि यह मिश्रण कम-से-कम ईसापूर्व 4700 से ईसापूर्व 3000 तक हो चुका था।
7000-2600 साल ईसा पूर्व :
मेहरगढ़ स्थल जौ और गेहूँ की खेती और पालतू जानवरों के उत्तरोत्तर बढ़ते उपभोग के साक्ष्य दर्शाता है। इस स्थल को ईसापूर्व 2600 और ईसापूर्व 2000 के बीच किसी समय में त्याग दिया गया था। तब तक खेतिहर बस्तियाँ समूचे उत्तर-पश्चिम भारत में यानी सिन्धु, घग्गर-हकरा नदी घाटियों और गुजरात में फैल चुकी थीं। 〜
7000 साल ईसा पूर्व :
इस समय के आस-पास से गंगा के ऊपरी मैदान में उत्तरप्रदेश के सन्त कबीर नगर स्थित लाहुरादेव से चावल की फ़सल काटने और टिकाऊ बसाहट के साक्ष्य मिलने लगते हैं। जंगली चावल को काटने से लेकर चावल की खेती तक का कालक्रम अभी तक निश्चित नहीं हुआ है, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं है कि लाहुरादेव कृषि के क्षेत्र में प्रयोगों के जो संकेत देता है, वे प्रयोग इसी समय के आस-पास दक्षिण एशिया में कई जगहों पर जारी थे और मेहरगढ़ का प्रकरण अलग-थलग नहीं था।
5500-2600 साल ईसा पूर्व :
आरम्भिक हड़प्पा युग, जो हिन्दुस्तान में कालीबंगा और राखीगढ़ी तथा पाकिस्तान-स्थित बनावली और रहमान ढेरी जैसे नगरों में इनकी अपनी विशिष्ट शैलियों में आरम्भिक खेतिहर बस्तियों के उदय की गवाही देता है।
3700-1500 साल ईसा पूर्व :
हिन्दुस्तान के विभिन्न हिस्सों - पूर्वी राजस्थान, दक्षिण भारत, मध्य भारत के विन्ध्य क्षेत्र, पूर्वी भारत और कश्मीर की स्वात घाटी - में आरम्भिक कृषि के साक्ष्य उभरने लगते हैं।
2600-1900 साल ईसा पूर्व :
परिपक्व हड़प्पा युग, जिसमें अनेक स्थलों का नवनिर्माण या पुनर्निर्माण होता है, और बहुत-से स्थलों को तज दिया जाता है। समूचे क्षेत्र में मानकीकरण का उच्च स्तर भी दिखाई देता है, जिसके तहत एक साझा लिपि, साझा मुहरों और साझा बाटों का प्रयोग किया जाता था। आरम्भिक हड़प्पा दौर से परिपक्व हड़प्पा दौर में प्रवेश चार या पाँच पीढ़ियों या 100 से 150 वर्षों के दौरान घटित होता है।
2300-1700 साल ईसा पूर्व :
ऑक्सस नदी (जिसे अमू दरिया के नाम से भी जाना जाता है) पर बसी और आज के उत्तरी अफ़गानिस्तान, दक्षिणी उज़्बेकिस्तान और पश्चिमी ताजिकिस्तान को अपने दायरे में समेटती सभ्यता बैक्ट्रिया-मार्जिआना आर्कियोलॉजिकल कॉम्प्लैक्स (बीएमएसी) का युग। बीएमएसी के हड़प्पा सभ्यता के साथ क़रीबी व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंघ हुआ करते थे।
2100 साल ईसा पूर्व :
कज़ाख़ स्टेपी से चरवाहों का दक्षिणाभिमुखी निष्क्रमण, जिसके तहत वे दक्षिण मध्य एशिया के उन क्षेत्रों की ओर जाते हैं, जिनको आज तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान कहा जाता है। ये प्रवासी बीएमएसी पर प्रभाव डालते हैं, लेकिन ज़्यादातर उससे कतरा कर निकल जाते हैं और ईसापूर्व की समूची दूसरी सहस्राब्दी के दौरान दक्षिण एशिया की ओर बढ़ते रहते हैं, जैसा कि नीचे (ईसापूर्व 2000-1000 के अन्तर्गत) दर्शाया गया है।
2000 साल ईसा पूर्व :
चीन से शुरू हुए स्थानान्तरण के दो बड़े सैलाब दक्षिण-पूर्व एशिया को नई शक्ल देते हैं। ये स्थानान्तरण तब होते हैं, जब चीन कृषि क्रान्ति और उसके नतीजे में आबादी में आए उफ़ान के दौर से गुज़र चुका होता है। पहला सैलाब ईसापूर्व 2000 के बाद हिन्दुस्तान में अपने साथ ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ, नई वनस्पतियाँ और चावल की एक नई क़िस्म लेकर आता है।
2000-1000 साल ईसा पूर्व :
मध्य एशिया से दक्षिण एशिया में स्टेपी के चरवाहा प्रवासियों के कई सैलाब आते हैं, जो अपने साथ इंडो-यूरोपियन भाषाएँ और नई मज़हबी और सांस्कृतिक प्रथाएँ लेकर आते हैं।
1900-1300 साल ईसा पूर्व :
परवर्ती हड़प्पा काल में हड़प्पा सभ्यता का पतन और अन्ततः लोप होता है, जिसकी मुख्य वजह वह दीर्घकालीन सूखा था, जिसने पश्चिम एशिया, मिस्र और चीन की सभ्यता पर बुरा प्रभाव डाला था।
0 Comments