भक्ति आन्दोलन के प्रभाव
(Effects of Bhakti Movement)
![]() |
Effects of Bhakti Movement in hindi |
(1) व्यावहारिक धर्म—
मध्य काल में जब मुस्लिम शासकों के अत्याचार के कारण हिन्दू धर्म का पालन करना असम्भव हो गया था, भक्ति आन्दोलन ने नाम स्मरण मात्र को ही धर्म पालन का स्वरूप निर्धारित कर दिया। इस प्रकार के व्यावहारिक धर्म में मन्दिर, मूर्ति, पुरोहित, शास्त्रों की आवश्यकता नहीं थी।
(2) हिन्दुओं को आशान्वित करना—
भक्ति आन्दोलन ने हिन्दुओं में आशा का संचार किया। उनकी अपने धर्म में श्रद्धा गहरी हुई।
(3) समन्वय का दृष्टिकोण—
भक्ति आन्दोलन ने हिन्दू तथा मुसलमानों को निकट लाने में सफलता प्राप्त की जिससे समन्वय के दृष्टिकोण का विकास हुआ।
(4) संकीर्णता का परित्याग—
भक्ति आन्दोलन ने सामाजिक तथा धार्मिक संकीर्णता को समाप्त किया और धर्म संगठित हुआ और इस्लाम की चुनौती का सामना करने के लिए तत्पर हो गया। इससे हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन रुक गया।
(5) मुसलमानों का प्रभाव—
भक्तों तथा सन्तों के मुस्लिम सन्तों से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुए। इससे उन्हें एक-दूसरे को समझने का अवसर प्राप्त हुआ। उदार तथा प्रबुद्ध मुसलमानों में हिन्दू धर्म के प्रति आदर उत्पन्न हुआ। शासक वर्ग पर भी इसका प्रभाव पड़ा और मुसलमानों के अत्याचारों में कमी आयी।
(6) आडम्बरों की समाप्ति—
भक्ति आन्दोलन के कारण कर्मकाण्ड और आडम्बर समाप्त हो गए और ईश्वर की भक्ति को ही पर्याप्त समझा गया। अब तीर्थ यात्रा या शास्त्रों के प्रणयन की आवश्यकता नहीं रह गई। मोक्ष प्राप्त करने के लिए गृह त्याग की आवश्यकता नहीं थी।
(7) निम्न जातियों का उत्थान—
भक्ति आन्दोलन ने जाति-पाँति का विरोध किया जिससे निम्न जातियों को उत्थान का अवसर प्राप्त हुआ। इनमें से कई ने प्रसिद्ध सन्तों के समान आदर प्राप्त किया। इससे हिन्दू समाज का सुधार हुआ।
(8) क्षेत्रीय साहित्य का निर्माण—
सन्तों ने अपने पदों की रचना स्थानीय भाषा में की तथा इसी बोलचाल की भाषा में अपने उपदेश दिए। इससे मराठी, गुजराती, अवधी, पंजाबी आदि भाषाओं में भक्ति साहित्य का निर्माण हुआ। भक्ति आन्दोलन का प्रभाव शासकों पर भी पड़ा था। बाबर ने इसकी सराहना की थी और अकबर ने इसे पुनः लागू करने का प्रयास किया था लेकिन समस्त गुणों के होते हुए भी भक्ति आन्दोलन हिन्दू और मुसलमानों के मध्य घनिष्ठ विश्वास तथा सम्बन्ध स्थापित करने में असफल रहा।
0 Comments