अपील कौन कर सकता है? अपीले कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
Who can file the appeal? How many types of appeal are there? Describe in brief.
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"अपील" एक न्यायिक प्रक्रिया है जिसमें कोई पक्ष एक निर्णय के खिलाफ दुबारा सुनवाई करने के लिए न्यायिक प्राधिकृति की ओर से याचिका दाखिल करता है। यह एक मुख्य साधन है जिससे न्यायिक निर्णयों की पुनरावृत्ति और न्यायिक प्रक्रिया में न्यायिक त्रुटियों को सुधारा जा सकता है।
अपील कौन कर सकता है?
अपील करने का अधिकार सामान्यत: उस पक्ष को होता है जिस पर न्यायिक निर्णय हुआ है और जो निर्णय से असंतुष्ट है। यह अधिकार जनरली प्रमुख न्यायिक प्रणाली में होता है, जो सुप्रीम कोर्ट से लेकर न्यायिक प्राधिकृतियों तक विभिन्न स्तरों पर उपलब्ध है।
अपील कितने प्रकार की होती हैं?
अपील की विधियों में कई प्रकार हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
1. याचिका अपील (पीटीए):
यह सबसे सामान्य प्रकार की अपील है जो न्यायिक निर्णय के खिलाफ की जाती है। पीटीए से सुप्रीम कोर्ट तक कई स्तरों पर अपील की जा सकती है।
2. सिविल अपील (सीए):
यह अपील सिविल मामलों के निर्णयों के खिलाफ की जाती है और सुप्रीम कोर्ट, न्यायिक प्राधिकृतियों, और हाईकोर्ट में की जा सकती है।
3. क्रिमिनल अपील (सीए):
यह अपील आपराधिक मामलों के निर्णयों के खिलाफ की जाती है और सुप्रीम कोर्ट, न्यायिक प्राधिकृतियों, और हाईकोर्ट में की जा सकती है।
4. जुवेनाइल अपील (जे):
यह अपील जुवेनाइल न्याय मामलों के निर्णयों के खिलाफ की जाती है और हाईकोर्ट तक की जा सकती है।
5. लैबर अपील (लेबरए):
यह अपील श्रम एवं उद्योग मामलों के निर्णयों के खिलाफ होती है और हाईकोर्ट तक की जा सकती है।
अपील की प्रक्रिया को सामान्यत: विशेष विधियों के अनुसार नियमित किया जाता है, जिसमें आपत्ति दर्ज करने, याचिका दाखिल करने, तर्कपूर्ण कारण प्रस्तुत करने, और सुनवाई की जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया शामिल होती है।
संक्षेप में, अपील एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया है जो न्यायिक निर्णयों की पुनरावृत्ति और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए साध
कुछ प्रमुख मामलों की उदाहरणों में, भारतीय न्यायपालिका ने निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण मुकदमों में निर्णय दिया है:
1. केदारनाथ भट्ट बनाम कर्नाटक सरकार (1971):
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक और सामाजिक स्वरूप की सही समझारूप में दोषपूर्ण न्यायिक निर्णयों के खिलाफ आपत्ति दर्ज की और यह स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और स्पष्टता बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
2. राजा राम मोहन राय बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (2014):
इस मामले में हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को जल्दी न्याय प्राप्त करने का अधिकार देने की आवश्यकता को उजागर किया और न्यायिक प्रक्रिया में देरी को कम करने की आवश्यकता को सामान्य लोगों के लिए महत्वपूर्ण बताया।
3. मनोहर लाल शर्मा बनाम राजस्थान (1994):
इस मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सुरक्षा के मामले में लोगों को न्यायिक निर्णयों को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करते हुए यह दिखाया कि न्यायिक तंत्र में सुरक्षिति बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
4. के.माला बनाम उत्तर प्रदेश (2013):
इस मामले में हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के मौद्दे को गंभीरता से लेने की आवश्यकता को उजागर किया और न्यायिक सुरक्षा में सुधार के लिए लोगों को आत्म-सहायता करने का विचार किया।
5. शहीद जिया उद्दीन जिया बनाम बांग्लादेश (2010):
इस मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने मौद्दे में न्यायिक त्रुटियों को सुधारने के लिए न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन की आवश्यकता को जाने और इसे लोगों की सुरक्षा में सुधार के रूप में माना।
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