प्रापक से आप क्या समझते हैं? प्रापक की नियुक्ति कब एवं किस प्रकार की जाती है? प्रापक के शक्तियां एवं कर्तव्य क्या होते है।
What do you understand by "Receiver"? How and when the receiver is appointed? What are the powers and duties of receiver? According to Civil Procedure Code, 1908
प्रापक (Receiver) की नियुक्ति:
प्रापक की नियुक्ति एक न्यायिक आदेश के तहत होती है जब किसी न्यायिक मामले में न्यायिक दरबार या न्यायालय एक व्यक्ति को या एक वर्ग को एक अवस्था में संपत्ति का प्रबंधन करने का अधिकार प्रदान करता है। प्रापक की नियुक्ति किसी भी न्यायिक मामले में, जैसे कि बैंकरप्ट्सी, संपत्ति संरक्षण, या जानियर संज्ञान आदि के तहत की जा सकती है।
प्रापक की शक्तियां:
1. संपत्ति प्रबंधन:
प्रापक को नियुक्त किया जाता है ताकि वह विशिष्ट संपत्ति का प्रबंधन कर सके, उसे सुरक्षित रख सके और आदान-प्रदान का ध्यान रख सके।
2. न्यायिक दरबार के आदेशों का पालन:
प्रापक को न्यायिक दरबार के आदेशों का पूरा करने का दायित्व होता है और वह न्यायिक प्रक्रिया की सारी शरतों का पालन करना चाहिए।
3. संपत्ति का बिक्री या पुनर्निर्माण:
प्रापक को अक्सर संपत्ति की बिक्री का अधिकार होता है ताकि वह आपत्तिजनक स्थितियों में संपत्ति को पुनर्निर्माण कर सके और उसकी मूल्यस्थिति को सुरक्षित कर सके।
4. नियमित रिपोर्टिंग:
प्रापक को नियमित अद्यतित रिपोर्टिंग का अधिकार होता है जिससे न्यायिक दरबार को संपत्ति के प्रबंधन की स्थिति का विवरण मिलता है।
प्रापक के कर्तव्य:
1. दायित्वों का पूरा करना:
प्रापक को नियामक द्वारा निर्दिष्ट किए गए दायित्वों का पूरा करना होता है और उसे विशेष न्यायिक आदेशों का भी पालन करना होता है।
2. संपत्ति की सुरक्षा:
प्रापक को संपत्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है, ताकि कोई भी आपत्तिजनक स्थिति न उत्पन्न हो और उसे उपयुक्त रूप से संरक्षित रखा जा सके।
3. न्यायिक दरबार को रिपोर्टिंग:
प्रापक को न्यायिक दरबार को नियुक्ति के प्रति नियमित रिपोर्टिंग करनी होती है जिससे न्यायिक दरबार को संपत्ति के प्रबंधन की स्थिति का विवरण मिलता है।
प्रापक के संबंधित केस लॉ:
1. Harbhajan Singh vs. Shri Bhagwan (AIR 1980 SC 725):
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रापक को एक समर्थन आदेश में नियुक्त किया गया जब एक आपत्तिजनक स्थिति में एक कंपनी के प्रबंधन में हेरफेर हो रहा था। प्रापक को नियामक द्वारा संपत्ति का प्रबंधन करने का अधिकार दिया गया ताकि संपत्ति को सुरक्षित रखा जा सके और कंपनी की स्थिति में सुधार किया जा सके।
2. J.P. Srivastava vs. Indian Explosives Ltd. (AIR 1986 All 12):
इस केस में, न्यायिक दरबार ने प्रापक को एक कंपनी के दीर्घकालिक संपत्ति प्रबंधन के लिए नियुक्त किया गया था जब कंपनी एक गंभीर आपत्तिजनक स्थिति में थी। प्रापक ने संपत्ति का पुनर्निर्माण किया और सुरक्षित रखा, जिससे कंपनी को स्थिति में सुधार हुआ।
समापन:
प्रापक की नियुक्ति एक महत्वपूर्ण कानूनी उपाय है जो आपत्तिजनक स्थितियों में संपत्ति का सुरक्षित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए होती है। प्रापक को न्यायिक आदेश के अनुसार विशेष दायित्व और शक्तियों के साथ नियुक्त किया जाता है जो न्यायिक प्रक्रिया की सहायता से संपत्ति के प्रबंधन का संबंधित है। कई केसों में, प्रापक के प्रयासों का सफल परिणाम आता है जिससे आपत्तिजनक स्थितियों में व्यापार या संपत्ति को सुधारा जा सकता है।
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