प्रश्न; संक्षेपण किसे कहते हैं? संक्षेपण को परिभाषित कीजिए।
अथवा", सार-लेखन से आप क्या समझते हैं?
अथवा", संक्षेपण करते समय ध्यान देने योग बातें लिखिए।
अथवा", संक्षेपण की विशेषताएं बताइए।
उत्तर--
संक्षेपण का अर्थ (sankshepan kise kahate hain)
संक्षेपण अथवा सार-लेखन से तात्पर्य है किसी अनुच्छेद, परिच्छेद, टिप्पणी या प्रतिवेदन आदि को संक्षिप्त कर देना। संक्षेपण को अंग्रेजी में क्षेपण/सार लेखन Precis जाता है और बोलचाल की भाषा में Summary प्रचलित है।
किसी विस्तार से लिखे गये विषय मामले अथवा आदि को संक्षेप में लिखकर प्रस्तुत कर देना सार लेखन या संक्षेपण कहलाता है। सार लेखन में मूल विषय-वस्तु या कथ्य सम्बन्धित मुख्य विचारों या तथ्यों को ही प्राथमिकता एवं महत्ता दी जाती है। इसमें अनावश्यक बातें, संदर्भ, तर्क-वितर्क आदि को हटा दिया जाता है और मूल विचार, तथ्य और भावों को ही रखा जाता हैं।
संक्षेपण अर्थात् सार-लेखन भी एक कला है और अध्ययन, अनुशीलन से उसे प्राप्त किया जा सकता है।
कार्यालयीन कामकाज ही नहीं अपितु जीवन में भी संक्षेपण कला का अत्यधिक उपयोग है। संक्षेपण को मानसिक प्रशिक्षण भी कहा गया है। लेखन में स्पष्टता, सरलता तथा प्रभावशीलता पैदा होती है। संक्षेपण से अनेक लाभ हो सकते हैं, जैसे--
(1) संक्षेपण से की एकाग्रता एवं दृढ़ता का विकास होता है।
(2) इससे मानसिक चिंतन, मनन तथा विचारों से स्पष्टता आती है।
(3) सार- लेखन से विश्लेषण शक्ति का विकास होकर अभिव्यक्ति प्रभावशाली तथा घनीभूत बनती है।
(4) संक्षेपण से मानसिक श्रम आदि की बचत होती है।
(5) संक्षेपण लेखन से ग्रहण शक्ति तथा अभिव्यक्ति शक्ति का विकास होता है।
(6) इससे शब्द मितव्ययिता आदि की क्षमता बढ़ती है।
संक्षेपण कैसे किया जाये?
1. मूल अनुच्छेद को अच्छी तरह एक या दो बार पढ़कर कथ्य को समझने का प्रयास करना चाहिए।
2. एक या दो बार खंड-खंड करके मूल अनुच्छेद की जरूरी बातों तथा तथ्यों को रेखांकित कर लेना चाहिए।
3. उन शब्दों तथा वाक्यों को एक क्रम से अलग लिख लेना चाहिए, जिनका संबंध कथ्य से है।
4. उदाहरणों, दृष्टांतों, चमत्कारपूर्ण उक्तियों, पुनरावृत्तियों, लोकोक्तियों तथा असंगत और अनावश्यक बातों को छोड़ देना चाहिए।
5. प्रत्यक्ष कथन तथा संवाद को अपने शब्दों में आवश्यकतानुसार ही लिखना चाहिए।
6.संक्षेपण हमेशा अन्य पुरुष में लिखा जाना चाहिए।
7. छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
8. अपनी तरफ से किसी भाव अथवा विचार को नहीं जोड़ना चाहिए, न ही मूलभाव को समझाने का यत्न करना चाहिए। मूल विषय की आलोचना तथा टीका-टिप्पणी भी नहीं करनी चाहिए।
9. कभी-कभार संक्षेपण के लिए शब्दों की संख्या दी गई होती है। उसका यथासंभव पालन करना चाहिए।
10. संक्षेपण का आकार मूल अनुच्छेद के आकार का एक तिहाई होना चाहिए। सार-लेखन के शब्दों की संख्या मूल अनुच्छेद के शब्दों की एक तिहाई होनी चाहिए।
11. मूल अनुच्छेद में शीर्षक न हो एवं जिसे सारलेखक में पूछा भी न गया हो तो भी विषय को समझने की सुविधा हेतु उसका एक शीर्षक देना चाहिए।
12. संक्षेपण की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण सोपान है-लेखन। मूल अनुच्छेद का प्रारूप तैयार करके आवश्यकतानुसार उसमें काट-छाँट करके संक्षेपण के लेखन को अंतिम रूप प्रदान करना चाहिए।
संक्षेपण की विशेषताएं (sankshepan ki visheshta)
आदर्श संक्षेपण वह है जो हमें बहुत थोड़े समय में बहुत थोड़े श्रम से, विषय को ह्रदयंगम करवा सके। संक्षेपण में स्पष्टता, संक्षिप्ता, सरलता, विचार-श्रृंखला की क्रमबद्धता, समग्रता के साथ-साथ रोचक, सरल, सहज तथा शुद्ध भाषा शैली का होना आवश्यक हैं। संक्षेपण मूल शब्दावली के स्थान पर समानार्थी या पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हुये अन्य पुरूष तथा भूतकाल में लिखी जानी चाहिए।
सभ्यता के साथ-साथ व्यस्तता ज्यों-ज्यों बढ़ती जा रही हैं, त्यों-त्यों मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संक्षिप्तता अपरिहार्य होती जा रही हैं। अच्छा संक्षेपण कार्य-कुशलता में वृद्धि करता है। एक अच्छे संक्षेपण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. संतुलित आकार
संक्षेपण का आकार संतुलित होना चाहिए अर्थात् संक्षेपण न अत्यंत छोटा हो न अत्यधिक बड़ा हो। प्रायः संक्षेपण मूल का तिहायी या एक चौथायी होता है। असाधारण स्थितियों में संक्षेपण मूल का 1/2 या 3/4 भी हो सकता है। प्रत्येक स्थिति में निर्दिष्ट शब्द संख्या अथवा आकार का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए।
2. परिपूर्णता
संक्षेपण करते समय मूल सामग्री से मुख्य तथ्यों का चयन इस प्रकार करना चाहिए कि संक्षेपण पूर्ण प्रतीत हो न तो मूल का कोई आवश्यक अंश छूटने पाये और न संक्षेपणकर्ता अपनी ओर से उसमें कुछ जोड़े ही।
3. पुनरावृत्ति से दूर
संक्षेपण में समानार्थी शब्दों को हटा देना चाहिए। एक ही भाव या विचार को बार-बार दुहराने से पुनरुक्ति दोष होता है। संक्षेपण की कला कम से कम-शब्दों में निखरती है।
4. अभ्यास व मनयोग
संक्षेपण में साहित्यिक चमत्कार और काव्यात्मक लालित्य की जरूरत नहीं है। जो लिखा जाए, वह साफ और स्पष्ट होना चाहिए। अतः संक्षेपण के लेखक वस्तुवादी हो, भावुक नहीं। यहाँ केवल अभ्यास और मनयोग की आवश्यकता है।
5. सुसंबद्धता व क्रमबद्धता
संक्षेपण में भावों और विचारों की सुसंबद्धता एवं क्रमबद्धता बनी रहनी चाहिए।
6. मौलिकता
संक्षेपण में मूलपाठ के कुछ वाक्यों को पूर्ववत् अपनाना उचित नहीं है। छोटे मूलपाठ को पूरा पढ़कर अपनी भाषा में संक्षेपण करना चाहिए। यदि मूलपाठ विस्तृत हो, तो कुछ अंश पढ़कर उसका संक्षेपण अपनी भाषा में करके फिर रोष भाग को इसी क्रम से अपनी भाषा में प्रस्तुत करना चाहिए। मौलिकता ही संक्षेपण को प्रभावी रूप प्रदान करती है।
7. स्पष्टता
संक्षेपण में भाषा का सरल और भाव का प्रवाहमय तरल रूप होना अनिवार्य होता है। प्रत्येक वाक्य की रचना पूर्ण सुस्पष्ट होनी चाहिए। जब मूलपाठ के भावक्रम को सरल रूप में और यथाक्रम में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसमें स्पष्टता होना स्वाभाविक है। स्पष्टता संक्षेपण की अपनी प्रमुख विशेषता है।
8. शीर्षक
पुस्तक का नामकरण जिन गुणों से सम्पन्न होता है, मूलपाठ का शीर्षक भी उन्हीं गुणों से सम्पन्न होना चाहिए। शीर्षक पढ़ते ही मूलपाठ के केन्द्रीय भाव के ज्ञान के साथ समग्र भाव का स्पष्ट आभास हो जाना चाहिए। शीर्षक सीमित शब्दों का होना विशेष उपयोगी होता है। शीर्षक होने से पाठक प्रथम दृष्टि में ही मूलपाठ के भाव को ग्रहण कर लेता है। यह ही शीर्षक की सफलता का परिचायक है।
9. क्रमबद्धता
संक्षेपण करते समय विचारों और भावों का वही क्रम होना चाहिए जो मूल सामग्री में हो। विचार-क्रम में परिवर्तन तब तक न किया जाये, जब तक अनिवार्य आवश्यकता न प्रतीत हो।
10. परोक्ष कथन
संक्षेपण में परोक्ष-व-कथन हमेशा अन्य पुरुष में होना चाहिए। संवादों के संक्षेपण में इसका उपयोग अत्यंत आवश्यक है।
11. शब्दों की संख्या
अन्त में अवतरण में प्रयुक्त शब्द तथा संक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों की संख्या लिख देनी चाहिए। क्रम होना चाहिए जो मूल सामग्री में हो। विचार-क्रम में परिवर्तन तब तक न किया जाये, जब तक अनिवार्य आवश्यकता न प्रतीत हो।
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