अन्तराभिवचनीय वाद क्या होता है?
अन्तराभिवचनीय वाद (Interpleader Suit) एक विशेष प्रकार का मुकदमा होता है, जो सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 88 और ऑर्डर 35 के अंतर्गत आता है। इसे ऐसे मामलों में दायर किया जाता है, जब किसी व्यक्ति के पास कोई संपत्ति (चल या अचल) हो, लेकिन उसे यह समझ में न आए कि संपत्ति का असली हकदार कौन है।
सरल भाषा में:
कल्पना कीजिए कि आपके पास कोई संपत्ति (जैसे पैसा, जमीन, या सामान) है और दो या अधिक लोग उस पर दावा कर रहे हैं। आप सुनिश्चित नहीं हैं कि इसे किसे देना चाहिए। इस स्थिति में, आप अदालत से मदद मांग सकते हैं। इसे ही अन्तराभिवचनीय वाद कहा जाता है।
अन्तराभिवचनीय वाद कब और किसके द्वारा दायर किया जा सकता है?
कब दायर किया जा सकता है?
अन्तराभिवचनीय वाद तब दायर किया जा सकता है जब:
- कई लोगों का दावा हो: संपत्ति पर दो या उससे अधिक लोगों के बीच विवाद हो।
- स्वयं का कोई दावा न हो: वादी (जो मुकदमा दायर कर रहा है) का उस संपत्ति पर कोई व्यक्तिगत अधिकार या दावा नहीं हो।
- वादी को स्पष्टता न हो: वादी को यह समझ में न आए कि संपत्ति किसे सौंपी जाए।
- वादी को मुकदमे का डर हो: यदि वादी संपत्ति किसी गलत व्यक्ति को सौंप देता है, तो उसे मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।
किसके द्वारा दायर किया जा सकता है?
- वह व्यक्ति जो संपत्ति को लेकर निष्पक्ष है।
- वह व्यक्ति जिसे डर हो कि संपत्ति को लेकर विवादित पक्ष मुकदमा दायर कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए:
- एक बैंक जिसने ग्राहक के पैसों पर विवादित दावे देखे।
- एक व्यक्ति जिसने जमीन खरीदी, लेकिन उस पर दो पार्टियों का हक जताया जा रहा है।
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की मुख्य धाराएँ
- धारा 88: यह धारा अन्तराभिवचनीय वाद को अनुमति देती है।
- ऑर्डर 35: इसमें अन्तराभिवचनीय वाद से जुड़ी प्रक्रियाएँ दी गई हैं, जैसे कि कौन वादी हो सकता है, क्या प्रक्रिया अपनानी है, और अदालत कैसे निर्णय लेगी।
महत्वपूर्ण केस कानून
Saraswati Devi v. Shyam Sundar (AIR 1961 SC 781):
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अन्तराभिवचनीय वाद का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वादी को किसी गलत व्यक्ति को संपत्ति सौंपने के कारण मुकदमेबाजी का सामना न करना पड़े।Kanhaiya Lal v. National Bank (AIR 1938 PC 182):
अदालत ने कहा कि यदि वादी का विवादित संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है और वह इसे अदालत के माध्यम से सही व्यक्ति को सौंपना चाहता है, तो अन्तराभिवचनीय वाद उचित होगा।
प्रक्रिया:
- मुकदमा दायर करना: वादी अदालत में अन्तराभिवचनीय वाद दायर करता है।
- संपत्ति जमा करना: अदालत के आदेश पर वादी विवादित संपत्ति अदालत में जमा करता है।
- पक्षकारों का निर्णय: अदालत विवादित पक्षकारों को सुनती है और निर्णय करती है कि संपत्ति का असली हकदार कौन है।
- फैसला: अदालत अपने निर्णय के अनुसार संपत्ति सही व्यक्ति को सौंपने का आदेश देती है।
निष्कर्ष:
अन्तराभिवचनीय वाद का उद्देश्य वादी को विवादों से बचाना और संपत्ति के असली हकदार की पहचान करना है। यह कानूनी प्रक्रिया न केवल वादी के लिए सुरक्षित है, बल्कि विवादित पक्षों के बीच पारदर्शिता भी लाती है।
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