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Oxidation & Reduction in hindi


UNIT-II: ऑक्सीकरण और अपचयन (Oxidation & Reduction)


https://www.uniexpro.in/2025/03/oxidation-reduction-in-hindi.html?m=1



1. रेडॉक्स विभव (Redox Potential) और विद्युत रासायनिक श्रेणी (Electrochemical Series):

  • रेडॉक्स विभव यह बताता है कि कोई धातु इलेक्ट्रॉन को कितनी आसानी से ग्रहण या त्याग सकती है।
  • विद्युत रासायनिक श्रेणी (Electrochemical Series) के अनुसार, धातुओं की निष्कर्षण विधि तय होती है।

2. तत्वों के निष्कर्षण में सिद्धांत:

  • रेडॉक्स विभव के आधार पर तय किया जाता है कि धातु को विद्युत अपघटन, भर्जन, स्वअपचयन आदि विधियों से निकाला जाए।

3. संयोजन यौगिक (Coordination Compounds):

  • वर्नर सिद्धांत: संयोजन यौगिकों में धातु मुख्य संयोजकता (Primary Valency) और द्वितीयक संयोजकता (Secondary Valency) से जुड़ी होती है।
  • IUPAC नामकरण: संयोजन यौगिकों के नाम विशेष नियमों के अनुसार लिखे जाते हैं।
  • समावयवता (Isomerism): ये यौगिक कई प्रकार की संरचनात्मक एवं प्रकाशीय समावयवता दिखाते हैं।
  • संयोजन संख्या (Coordination Number): संयोजन यौगिकों में यह संख्या 4 और 6 हो सकती है।
  • चेलेट्स (Chelates) और बहुपरमाणुक यौगिक (Polynuclear Complexes): कुछ यौगिकों में एक ही अणु कई जगह से जुड़ सकता है, जिससे चेलेट बनते हैं।


Imp Question Answer From Unit 2 Of BSC 2nd Year Raigarh, Bilaspur, Raipur, Sarguja, University Chhattisgarh 



इकाई-II (Unit-II)

(a) रेडॉक्स विभव के सिद्धांत से धातुओं का निष्कर्षण (Redox Potential and Metal Extraction)

धातुओं को उनके अयस्क (ores) से निकालने के लिए ऑक्सीकरण (Oxidation) और अपचयन (Reduction) की प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इसे रेडॉक्स विभव (Redox Potential) के सिद्धांत से समझा जाता है।

  • रेडॉक्स विभव यह बताता है कि कोई तत्व इलेक्ट्रॉन आसानी से खो सकता है या ग्रहण कर सकता है।
  • जिन धातुओं का रेडॉक्स विभव अधिक होता है, वे आसानी से इलेक्ट्रॉन खोकर आयन में बदल जाती हैं और उनकी निष्कर्षण विधि कठिन होती है।
  • कम रेडॉक्स विभव वाली धातुओं को सरल तरीकों से निकाला जा सकता है।

उदाहरण:

  • सोडियम (Na) और पोटैशियम (K) को इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis) से निकाला जाता है क्योंकि उनका रेडॉक्स विभव बहुत अधिक होता है।
  • तांबा (Cu) और चांदी (Ag) को साधारण अपचयन (Reduction) से निकाला जा सकता है क्योंकि उनका रेडॉक्स विभव कम होता है।

(b) धातु निष्कर्षण की विधियाँ (Metal Extraction Methods)

(i) भर्जन (Roasting)

  • यह प्रक्रिया सल्फाइड अयस्कों (Sulfide Ores) को वायु में गर्म करने के लिए की जाती है।
  • इससे धातु का ऑक्साइड बनता है और गैसें बाहर निकल जाती हैं।

समीकरण:

2ZnS+3O22ZnO+2SO2

(जिंक सल्फाइड + ऑक्सीजन → जिंक ऑक्साइड + सल्फर डाइऑक्साइड)

उदाहरण:

  • जिंक सल्फाइड (ZnS) को भर्जन करने से जिंक ऑक्साइड (ZnO) बनता है।
  • कॉपर (Cu₂S) और लेड (PbS) के अयस्क भी भर्जन से निकाले जाते हैं।

(ii) स्वअपचयन (Self-Reduction)

  • यह उन धातुओं के लिए उपयोग होता है जिनके अयस्क भर्जन के बाद स्वयं ही अपचय (Reduction) कर लेते हैं।
  • यह प्रक्रिया तांबा (Cu), पारा (Hg) और चांदी (Ag) के अयस्कों में होती है।

समीकरण:

2HgS+3O22HgO+2SO22HgO2Hg+O2

(पारा सल्फाइड → पारा ऑक्साइड → पारा धातु)

उदाहरण:

  • सिनाबार (HgS) को भर्जन करने से पहले HgO बनता है, जो स्वतः Hg में बदल जाता है।
  • कॉपर (Cu₂S) को भी इसी तरह निकाला जाता है।

(iii) थर्माइट प्रक्रम (Thermite Process)

  • इसमें अत्यधिक सक्रिय धातु (जैसे एल्यूमिनियम) को अपचायक (Reducing Agent) के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • यह विधि उन्हीं धातुओं के लिए होती है जो बहुत स्थिर ऑक्साइड बनाती हैं, जैसे लौह (Fe), क्रोमियम (Cr), मैंगनीज (Mn) आदि।

समीकरण:

Fe2O3+2Al2Fe+Al2O3+Heat

(लौह ऑक्साइड + एल्युमिनियम → लौह धातु + एल्युमिनियम ऑक्साइड + ऊष्मा)

उदाहरण:

  • लौह (Fe), क्रोमियम (Cr), मैंगनीज (Mn) को उनके ऑक्साइड से निकालने में यह प्रक्रिया उपयोगी होती है।
  • यह प्रक्रिया रेलवे पटरियों की मरम्मत में भी प्रयोग की जाती है।

(a) वर्नर सिद्धांत (Werner's Theory)

अल्फ्रेड वर्नर (Alfred Werner) ने संयोजन यौगिकों (Coordination Compounds) की संरचना को समझाने के लिए एक सिद्धांत दिया।

वर्नर सिद्धांत की मुख्य बातें:

  1. प्राथमिक संयोजकता (Primary Valency)

    • यह आयनिक (Ionic) प्रकृति की होती है।
    • यह धातु के सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था के बराबर होती है।
    • इसे डैश (-) से दर्शाया जाता है।
  2. द्वितीयक संयोजकता (Secondary Valency)

    • यह धातु से सीधे जुड़े लिगैंड (Ligands) की संख्या को दर्शाती है।
    • इसे कोऑर्डिनेशन संख्या (Coordination Number) कहते हैं।
    • इसे ठोस रेखा (—) से दर्शाया जाता है।

उदाहरण:

CoCl36NH3 (कोबाल्ट संयोजन यौगिक) में:

  • प्राथमिक संयोजकता: +3 (Co³⁺ आयन के कारण)
  • द्वितीयक संयोजकता: 6 (क्योंकि 6 अमोनिया लिगैंड जुड़े हैं)

निष्कर्ष:

  • संयोजन यौगिकों में धातु आयन दो प्रकार की संयोजकताएँ रखता है।
  • यह सिद्धांत संयोजन यौगिकों की संरचना को समझने में मदद करता है।

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